Translate

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

आखिर कब एकजुट होंगे यूपी के पत्रकार

देश के सबसे बडे सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी के पत्रकारों के बीच इन दिनों जबरदस्त मारकाट (आरोप प्रत्यारो) मची हुइ है। पत्रकार पूरी तरह से गुटों में बंट गये हैं। दो गुट तो साफ तौर से नजर आ रहा है लेकिन इससे आधक गुटों से इनकार नहीं किया जा सकता । यह शायद राजधानी में पहली बार देखने को मिल रहा है। वैसे तो उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के चुनाव के समय पत्रकार गुटों में बंटते हैं और चुनाव के बाद फिर सबएकजुट हो जाते हैं लेकिन पहली बार ऐसा दिख रहा है कि चुनााव खत्म होने के बाद भी पत्रकारों में जबरदस्त गुटबाजी है। पत्रकारों की इस गुटबाजी की चर्चा अफसर व राजनेता भी चटखारे लेकर कर रहे हैं। सूचना विभाग भी पत्रकारों की इस गुटबाजी का शिकार हो रहा है। किसी एक मुद््‌दे पर पत्रकार एकजुट नहीं हैं। यहां तक कि अभी हाल में पी 7 न्यूज चैनल के पत्रकार ज्ञानेन्द्र शुक्ल का एक खबर की बाइट को लेकर प्रदेश के ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद से विवाद हो गया। हालात यहां तक खराब हो गये कि मारपीट की नौबत आ गयी। पत्रकारों का एक गुट वहां मौके पर पहुंचा और विवाद को शान्त कराया। कैबिनेट सचिव ने मीडिया सेन्टर में पत्रकारों के बीच आकर घटना के लिए खेद जताया तब जाकर किसी तरह पत्रकारों की इज्जत बची। इस घटना के बाद ही पत्रकारों का एक गुट ज्ञानेन्द्र की ही पूरे घटना में दोष दे रहा था। यह सबवुᆬछ किसी मीटिंग में नहीं बल्कि अलग-अलग चर्चा के दौरान ये सबवुᆬछ कहा गया। हो सकता है कि ज्ञानेन्द्र शुक्ल की कोइ गलती इस पूरे मामले में रही हो लेकिन मेरी राय में पत्रकारों को इसमें पूरी तरह से एकजुटता का परिचय देना चाहिए था। ऐसी चर्चा से भी बचना चाहिए था जिससे लगे कि पत्रकारों में किसी तरह की गुटबाजी है लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि राजधानी के पत्रकारों को क्या हो गया है जो आपस मं सिरपुᆬटैवल कर रहे हैं। किसी के बारे में किसी की व्यक्ति राय खराब हो सकती है लेकिन उसे मीडिया समाज से बाहर प्रदर्शित करना ठीक नहीं है। एक सांध्य समाचार पत्र ने वुᆬछेक पत्रकारों के खिलाफ ही आभयान चला रखा है। यह ठीक नहीं है। मेरी समझ से इससे पत्रकार बिरादरी ही बदनाम हो रही ह। मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति का चुनाव समाप्त हो गया जो पदाधिकारी चुन लिये गये उन्हें काम करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। सबको उनका पूरा साथ देना चाहिए। कमेटी के पदाधिकारियों को भी सबको साथ लेकर चलना चाहिए। चुनाव के बाद समिति का विरोध करना ठीक नहीं है। वह भी ऐसी कमेटी का जिसके पास किसी तरह के वित्तीय आधकार नहीं है। कोइ प्रशासनिक आधकार नहीं है। चुनाव से पहले वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त तिवारी व मेरे साथ भी एक दिलचस्प घटना घटी। उस घटना में भी कइ पत्रकार साथियों ने पुलिस की बजाय हमलोगों का विरोध किया था। यह विरोध के स्वर मेरी वजह से नहीं बल्कि हेमन्त तिवारी की वजह से पत्रकारों ने उठाये थे लेकिन यहां मैं यह बता दूं कि कोशिश होनी चाहिए कि हम सच के साथ खडे हों क्योकि पत्रकार समाज का दर्पण होता है। आज भी लोगों का पूरा भरोसा मीडिया और उसे चलाने वाले पत्रकारों पर है। ऐसे में पत्रकार यदि अपने बीच होने वाली घटनाओं पर सच जाने बगैर अपने किसी मीडियाकर्मी का विरोध या आलोचना करता है तो ठीक नहीं है।
देवकी नन्दन मिश्र
पत्रकार लखनऊ
9839203994

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें