आप सोच रहे होंगे कि इस पत्रकार को ब्लाग लिखने की जरुरत क्यों आन पडी, जब इसके पास लिखने के लिए पहले से एक प्रमुख समाचार पत्र व टेलीविजन है। आपकी सोच ठीक है लेकिन मेरा मानना है कि अपनी ढेर सारी भावनाएं व विचार हम उस समाचार पत्र में नहीं लिख सकते। इसके लिए इण्टरनेट ब्लाग मुझे बेहतर माध्यम लगा। मेरे ब्लाग पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी साथ ही आपके सुझावों से इसमें बदलाव करने में यूपी के इस बन्दे को सहूलियत होगी।
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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
आतंकवाद के खिलाफ खडे हों आम लोग
पुणे में आतंकवादी हमले के बाद एक बार फिर देश की सुरक्षा एजेन्सियों की कार्यप्रणाली पर मीडिया ने ऊंगली उठाना तेज कर दिया है। हरबार की तरह इस बार इसे खुफिया एजेन्सियों की बडी चूक कहा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पुणे आतंकवादियों के निशाने पर था यह पहले पकडे गये आतंकवादियों ने खुलासा कर रखा था। अमरिका में पकडे गये खुंखार आतंकवादी हेडली का नाम भी लिया जा रहा है। हेडली ने दिल्ली के साथ ही पुणे व कानपुर को लश्कर के निशाने पर बताया था। यह ठीक बात है कि हेडली ने इस बात का खुलासा कर रखा था कि पुणे में ओशो आश्रम व जर्मन सेंटर आतंकियों की हिटलिस्ट में था लेकिन यह हमले कब होंगे इस बारे में तो किसी को नहीं पता था। पुणे के कमिश्नर का बयान आया कि वह पूरी तरह से चौकस थे लेकिन इसी बीच आतंकवादी अपना काम कर गये। इस हमले को एक सप्ताह गुजरने वाले हैं लेकिन अभी तक आतंकवादी गुट के नाम का खुलासा पुलिस नहीं कर पायी है। पुलिस का दावा है कि उसे अहम सुराग हाथ लगे हैं। किसी घटना के बाद उसके खुलासे की जिम्मेदारी तो निश्चित ही पुलिस व खुफिया एजन्सियों की है लेकिन घटना से पूर्व चौकसी का जिम्मा सिर्पᆬ पुलिस का ही नहीं है। आम आदमी को भी चौकन्ना रहने की जरुरत है। हम लोग अगर थोडी सी सावधानी बरतें तो शायद बडी आतंकवादी वारदात को टाला जा सकता है। शायद पुणे की घटना को भी हम टाल सकते थे। पुणे में जिस तरह से आतंकवादी रेस्तरां में आये और बम से भरा बैग रखकर चले गये और देर तक किसी की भी निगाह उस पर नहीं गयी। ऐसा नहीं है निगाह जरुर गयी होगी लेकिन किसी ने उस बैग पर संदेह जताने की कोशिश नहीं की। बैग को देखने वाले हर शख्स ने यह समझकर कि यह सामने वाले का होगा चुप रह गये होंगे। किसी ने भी यदि उस बैग के बारे में पूछताछ कर ली होती तो शायद इतनी बडी घटना से बचा जा सकता था। जब कोइ उस बैग का वारिस नहीं मिलता तो फौरन पुलिस को सूचना दी जाती। यह भी हो सकता था कि पुलिस के आने से पहले बम फट जाता लेकिन इतनी जान तो नहीं ही जाती। लेकिन समय से सूचना मिलने पर यह भी हो सकता था कि बम फटने से पहले ही पुलिस पहुंचकर उसे डिपत्यूज कर देती। यह तभी सम्भव हो पाता जब कोइ जागरुक नागरिक उस लावारिश बैग पर संदेह व्यक्त करता। रेलवे स्टेशन पर अक्सर एनाउंस होता रहता है कि किसी लावारिश वस्तु या सामान का न छुएं, कहीं दिखे तो फौरन पुलिस को सूचना दें। कभी कभार लोग लावारिश चीज देखकर पुलिस को सूचना भी देते हैं। मुझे लगता है कि जिस तेजी के साथ देश में आतंकवाद रुपी सांप अपना फन पैᆬला रहा है उससे मुकाबला अकेले पुलिस व सुरक्षा एजेन्सियां नहीं कर सकती हैं। अपने देश में इतना पुलिस बल और हथियार नहीं मौजूद है जिसे एक-एक व्यक्ति की सुरक्षा में तैनात कर दिय जाय। ऐसे में देश की सवा सौ करोड की आबादी को खुद इस आतंकवाद से मुकाबले के लिए खडा होना पडेगा जेहाद से टक्कर लेनी होगी। अपने आसपास की वस्तु व रहने वाले व्यक्ति पर नजर रखनी होगी, सार्वजनिक स्थान पर विशेषकर। ऐसे मामले प्रकाश में खूब आ रहे हैं कि पैसों की लालच में अपने देश के वुᆬछ लोग बहकावे में आकर आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं। आतंकी की पौध को लहलहाने में उनकी मदद कर रहे हैं। यह निहायत ही गम्भीर बात है। हमें ऐसे पनाहगारों से भी सावधान रहन्ो की जरुरत है। उनकी भी पहचान करके उनके बारे में पुलिस को जानकारी देने की जरुरत है। आतंकवादियों के हौसलों को पुलिस नहीं बल्कि आम लोग पस्त कर सकते हैं। पुलिस को हर मोहल्ले में रहने वालों की जानकारी नहीं होती है लेकिन पडोसी को अपने बगल में रहने वाले के बारे में सबवुᆬछ पता होता है। ऐसे संदिग्ध व्यक्ति पर नजर रखने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को पुलिस की भूमिका अदा करनी होगी तभी शायद आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है। मीडिया की भी भूमिका इसमें बेहद महत्वपूर्ण है। वजह मीडिया पर लोगों का पूरा भरोसा है। सरकार भले ही अपनी आलोचना से नाराज होकर मीडिया पर आरोप लगाने लगे लेकिन आम लोग आज भी सर्वाधिक भरोसा मीडिया पर करते हैं क्योंकि मीडिया हर सुखदुख में आम आदमी के साथ खडा रहता है। वैसे तो मीडिया 24 घंटे जागरुक रहता है लेकिन उसे आम लोगों में आतंकवाद से बचाव के लिए अपने इस विश्वास को हथियार बनाना चाहिए। मीडिया ने आतंकवाद के खिलाफ आम लोगों को जागरुक कर लिया तो आतंकवादी को एक दिन भी देश में पनाह नहीं मिल पाएगी। फिर आतंकवादी हमले तो दूर की कौडी होंगे। जय हिन्द जय आम लोग।
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आदरणीय भाई साहब ,
जवाब देंहटाएंआपके ओज़स्वी विचारो से अवगत हुआ । आप में एक असाधारण शक्ति है। जहा आज विश्व आतंकवाद से परेशान है। वही पर आप कलम के सिपाही का दयित्य्व निभा रहे है। वाह क्या बात है।
मेरे ख्याल से आज के लोग भगत सिंह तो चाहते है पर बगल के घर मैं। मैं आप के साथ हर तरह से हूँ ।
में भी भारत वर्ष की जनता से अपील करूंगा की वो इस संघर्ष को सफल बनाने के लिए साथ दे।
आपका .....
प्रणीत चतुर्वेदी