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बुधवार, 14 अप्रैल 2010

हरि के द्वार पर दुनिया का मेला

हरिद्वार यानी हरि का द्वार। विश्व की इस अध्यात्मिक नगरी में १४ अप्रैल को दुनिया का सबसे बडा मेला समाप्त हो गया। वैसे तो तीन माह तक चले इस मेले में देश विदेश के पांच करोड से ज्यादा लोगों ने पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाकर अपनी मनोकामना पूरी होने की मिन्नतें की। अंतिम दिन भी ५० लाख से ज्यादा लोग गंगा में स्नान किये। यह ऐतिहासिक छण अब १२ वर्ष बाद आएगा। वैसे तो अर्द्वकुम्भ हर तीन साल पर आता है लेकिन १२ साल पर पूर्णकुम्भ  लगता है। कुम्भ  में शाही स्नान के मौके पर अखाडों के जुलूस पर पूरी दुनिया की नजर रहती है। इस कुम्भ  में तीन लाख से ज्यादा साधु सन्तों ने भी गंगा में डुबकी लगायी। लाखों साधु सन्त तो तीन महीने तक कुम्भनगरी में रुककर तपस्या करते रहे। आलीशान मठों में रहने वाले साधु सन्त तिरपाल के पाण्डाल में वुᆬछ ज्यादा ही प्रसन्न हैं। दिन भर उनके पास भक्तों का आर्शीवाद लेने का तांता लगा रहता है। दोनों वक्त किसी न किसी भण्डारे में शिरकत। शाम को भजन व प्रवचन। इस कुम्भ  में गंगा में डुबकी लगाने का सौभाग्य मुझे भी मिला। कुम्भ  में हर तरफ अलग ही नजारा नजर आ रहा था। अमीर-गरीब सब तिरपाल के पाण्डाल में दरी पर सो रहे हैं। करोडों के कारोबारी कुम्भ में पुण्य कमाने के लिए महीनों से साधु सन्तों की शरण में डेरा डाले हुए हैं। गुजरात से आये एक व्यापारी कहते हैं कि जीवन का जो सुख उन्हें गंगा के किनारे सन्तों के बीच मिल रहा है उन्हें अपनी कोठी में कभी नहीं मिला। उनका पूरा परिवार कुम्भ में स्नान जरुर करता है। मनीष की तरह हजारों करोडपति व्यापारी कुम्भ  में साधु सन्तों की सेवा में लगे हुए हैं। साधु भी अपनी आवभगत से बेहद प्रसन्न हैं। अयोध्या के साधू धरणीधर जी से मेरी मुलाकात वैरागी पाण्डाल में हुई। बकौल धरणीधर जी अयोया से ज्यादा व्यस्तता कुम्भ  में है। रोज किसी ने किसी भण्डारे में जाना पडता है। कई बार एक ही समय पर कई लोग भण्डारा कराना चाहते हैं यह कैसे सम्भव है। कुम्भ  में आने पर लगता है कि देश में कितने धार्मिक लोग हैं। बिन बुलाये करोडों लोग यहां पहुंच रहे हैं। वैरागी आश्रम के एक पाण्डाल में वुᆬछ अलग ही नजारा नजर आया। अंग्रेज भक्त अयोध्या के वुᆬछ साधुओं का पांव धुलकर तौलिया से पोंछ रहे थे। भण्डारा कराया फिर उन्हें दक्षिणा दी। सौ वर्ग किलोमीटर से ज्यादा में बसे कुम्भ नगर में हर तरफ अलग ही नजारा नजर आया। हरि की पैडी का तो महत्व ही अलग है। भारी भीड के बावजूद मुझे हरि की पैडी पर दो दिन स्नान करने का सौभाग्य मिला। हरि की पैडी पर ही एक होटल में मैं ठहरा था। गंगा जी की निर्मल दारा में डुबकी लगाने का आनन्द ही वुᆬछ और है। सुबह के समय तो गंगा जी इतनी शीतलता लिये हुए थी कि पांच मिनट तक पानी में रहना सम्भव नहीं हो पा रहा था। हरि की पैडी पर वैसे तो २४ घंटे स्नान चलता रहता है लेकिन भोर के तीन बजे से रात १२ बजे तक भारी भीड रहती है। शाम को पांच बजते ही आरती दर्शन के लिए लोग स्थान सुरक्षित करने में लग जाते हैं। जरा सी देर हुई तो आरती में जगह नहीं मिलती। वैसे तो आरती ६़४२ बजे प्रारम्भ होती है लेकिन ऐतिहासिक गंगा आरती के लिए घंटों तक लोग इन्तजार करते हैं। विदेशी सैलानियों में भी आरती को लेकर गजब का उत्साह नजर आया। आरती के समय हरि की पैडी पर स्नान रोक दिया जाता है। आरती के बाद भीड छंटते ही फिर गंगा में डुबकी का सिलसिला शुरु हो जाता है। वुᆬम्भ में आने वाले हर व्यक्ति पर नजर रखने के लिए कैमरे तो लगे ही थे २० हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी भी तैनात रहे। पहली बार १३० प्रशिक्षु आईपीएस आधकारियों को वुᆬम्भ की व्यवस्था देखने के लिए खास तौर पर हरिद्वार भेजा गया। वैसे तो यहां ३ से ४ लाख लोग साल में ३६५ दिन हरिद्वार में गंगा में डुबकी लगाते हैं लेकिन ५३५ साल बाद लगे इस अदभुद संयोग वाले कुम्भ में भीड के रोज नये रिकार्ड बनते नजर आये। आखिरी तीन दिनों में सवा करोड लोगों के स्नान का अनुमान है। १४ जनवरी २०१० को कुम्भ  का पहला स्नान था। अब तक पांच करोड से ज्यादा लोग गंगा में डुबकी लगा चुके हैं। कुम्भ  को हिन्दुओं का दुनिया का सबसे बडा आयोजन माना जाता है। इतनी बडी संख्या में लोग मक्का में हज के दौरान ही जमा होते हैं। हरिद्वार में इतनी भीड के बावजूद कहीं भी अव्यवस्था नजर नहीं आयी। यह अलग बात रही कि भीड बढने पर वाहनों का आवागमन रोक देने से यात्रियों को दूर तक पैदल जरुर चलना पडा। जय गंगे माता।

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