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शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

आतंकी हमले रोकने के लिए पुलिस पर डंडे चलाओ

देश में एक और आतंकवादी हमला ७ सितम्बर को हो गया. दिल्ली हाईकोर्ट में रखे  टाइम बम में विस्फोट हुआ और १३ लोग मारे गये ८० से ज्यादा घायल हो गये. देश में यह पहली बार नहीं हुआ. अकेले दिल्ली में पिछले पांच साल में ६ आतंकवादी हमले हो चुके है. हमले के बाद उसके गुनहगारो को तो हम देर सबेर पकड लेते है लेकिन फिर  हमले न हो यह रोक पाना हमारे लिये नामुमकिन सा नज़र आ रहा है. अमरीका में एक ९/११ हुआ उसके बाद कोई आतंकवादी हमले का साहस नहीं जूठा पाया. अमरीका ने हमला करने वाले ओसामा को पाकिस्तान में मार गिराया. हम ऐसा नहीं कर सकते है लेकिन अपनी सुरछा तो कर सकते है ताकि कोई आतंकवादी हमला नहीं कर पाये. संसद से लेकर टी वी चैनलों तक लम्बी लम्बी बहस हो रही है लेकिन इन हमलो के लिये जिम्मेदार कौन है इसका पता नहीं चल पा रहा है. सरकार पर आरोप लग रहे है लेकिन कोई यह नहीं कह रहा है कि मोटी तनख्वाह लेने वाले पुलिस और खुफिया एजेंसियों के अफसर क्या कर रहे थे जिनकी इन हमलो को रोकने कि जिम्मेदारी थी. खुफिया एजेंसियों के अफसर क्या कर रहे थे. उन्हें क्यों दिल्ली में घुसे आतंकवादियों के बारे में नहीं पता चल पाया और अगर उन्हें पता था तो पुलिस उन्हें हमले से पहले पकड़ क्यों नही पकड़ पायी? अगर ये अफसर इतने नकारे हो गये है तो इनके खिलाफ क्यों कारवाई नहीं हो रही है. मेरे हिसाब से जब तक इन पर चाबुक नहीं चलेगा तब तक इस तरह कि वारदातों को रोकना आसन नहीं होगा. यह्ना आपको उत्तर प्रदेश पुलिस का उदाहरन देना चाहूँगा. अगर किसी थाना छेत्र में कोई घटना हो गई तो उसके खुलासे कि जिम्मेदारी वहा के थानेदार कि होती है. घटना होने के लिये भी उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. थानेदार को अपने खिलाफ कारवाई का भय रहता है और पूरी शिद्दत के साथ लगा रहता है. आतंकवादियों को रोकने के लिये सीमा के अलावा पूरे देश में भारी भरकम पुलिस अफसर तैनात है लेकिन नतीजा सिफर है. वजह इनकी कोई भी जवाबदेही नहीं है. कोई सूचना मिल गई तो भी ठीक नहीं मिली तो भी कोई बात नहीं. कभी इनकी कोई भी जवाबदेही नहीं रहती है. अलबत्ता इन पर लोगो को उठाकर छोड़ देने के नाम पर उगाही के आरोप भी खूब लगते रहते है.सरकार इनको जवाबदेह क्यों नहीं बना रही है यह समझ से परे है. नेताओ का मेरे समझ से इन मामलों से कोई लेना देना नहीं है वो तो वही बोलते है जितना ये पुलिस अफसर बताते है उन्हें क्या पता है कि गडबडी कहा हो रही है. अमरीका ने ९/११ के बाद अपने पुलिस अफसरों को साफ कर दिया था उन्हें अब हमले नही चाहिए तुम चाहे जो भी करो और वे जी जान से लग गये. इक टीम ओसामा कि तलाश में लग गई और दूसरी आतंकवादियों के हमलो के रास्तो को रोकने में जुट गई. उन्हें इसका फायदा भी मिला आंकवादी अमरीका में दोबारा हमले का रास्ता नहीं निकल पाये जबकि उनके आका को भी उनके घर में घुसकर उसने मार गिराया. हम अपने पुलिस को जवाबदेह क्यों नहीं बना पा रहे है आखिर कौन रोक रहा है हमारी सरकार को. आतंकवादी सेल में तैनात जो पुलिस वाले मलाई काट रहे है उनकी जवादेही तय कि जाय तभी हम इसे रोक पाएंगे. अगर मोजुदा टीम कुछ नहीं कर पा रही है तो उसे हटाया जाय निलम्बित किया जाय नई टीम लगायी जाय तभी हमले रुक सकते है. आतंकवादियों को भारतीय पुलिस का खोफ नहीं रहा है जिस तरह का अमरीका पुलिस का है. खोफ पैदा करना होगा उनमे तब डरेंगे और ये पुलिस ही कर पायेगी और पुलिस पर सरकार कि कारवाई का खोफ.....जय हिंद