उत्तर प्रदेश के इतिहास में शायद ये पहला मौका होगा जब लोकायुक्त की जांच में आये दिन प्रदेश का कोई विधायक या मंत्री फंस रहा हो । जांच में आरोप पुस्त होने के बाद लोकायुक्त की सिफारिश पर मंत्री को तो राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने हटा दिया लेकिन जिस आरोप में उन्हें हटाया जा रहा है है उस पर इतना छोटा दण्ड समझ से परे है। ऐसे मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किये जाने के साथ ही उनके कब्जे वाली जमीन खाली करायी जानी चाहिए । अगर किसी ने अपने या अपनी पत्नी के स्कूल में विधायक निधि दे दी है तो उससे वसूली होनी ही चाहिए लेकिन इस्तीफे के बाद मामला ठप सा पड़ता नज़र आ रहा है ।
लोकायुक्त तो किसी भी एक मामले में सिफारिश करने के बाद दूसरी जांच में व्यस्त हो जाते हैं और सरकारी मशीनरी इस वजह से चुप बैठ जाती है क्योंकि आरोपी मंत्री या विधायक है तो इसी सरकार के समर्थन में। ऐसे में किसी अफसर की इतनी हिम्मत कह्ना है जो कब्जे वाली जमीं को खली कराये. एक दिसम्बर को एक और मंत्री रतनलाल अरिवार को मंत्री पद की कुर्सी गंवानी पड़ी । जमीन पर कब्जे के मामले में ही दोषी पाये जाने पर लोकायुक्त ने उन्हें हटाने की सिफारिश की थी। इससे पहले राजेश त्रिपाठी, रंगनाथ मिश्र, बादशा सिंह व अवधपाल सिंह को जमीन पर कब्जे के साथ ही अन्य अनियमितताओं के आरोप में अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। मंत्री की कुर्सी तो इनकी चली गयी लेकिन जिन जमीनों पर इन महानुभावो ने कब्जे किये थे वह अभी भी उन्ही के कब्जे में है। यही नहीं अपने या अपने परिवार द्वारा संचालित जिन स्कूलों को विधायक निधि देना लोकायुक्त ने गलत माना उसे दोय गया धन सरकारी खजाने में अभी तक वापस नहीं किया गया है। यही नहीं इन विधायकों व मंत्रियों को भी बसपा ने अभी तक पार्टी से नहीं निकाला है। कईयों के टिकट भी बरकरार रखे गये हैं। ऐसे में महज कुर्सी पर से हटाने भर क्या इन्हें सजा मिल गयी?
लोकायुक्त के यहाँ जिस गति से शिकायतें आ रही हैं उससे लग रहा है कि विधायक व मंत्री बनने के साथ ही नेता लोग जनता की समस्याएं सुलझाने की बजाय जमीन व मकान पर कब्ज में लग जाते हैं। जब तक कुर्सी बरकरार रहती है अपने व अपने परिवार के लिए सम्पत्ति जुटाने पर ही पूरा जोर रहता है। सरकारी सम्पत्ति पर कब्जे के साथ ही गरीबों की जमीन भी कब्जियाने से पीछे नहीं हटाते । कब्जे के बाद गरीब मजबूरी में औने पौने दाम में उन्हें अपनी जमीन रजिस्ट्री कर देते हैं। आखिर अपने जनप्रतिनिधियों की इस तरह की हरकतों से प्रदेश किस तरह से तरक्की करेगा?
बहुत सही कह रहे है सर जी,सारे लोग श्री हीन हो चले हैं.
जवाब देंहटाएंvery true...
जवाब देंहटाएंWell said Mishra JI
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