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गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

अचानक क्यों फिर आम से खास हो गये ब्राह्मण


 उत्तर  प्रदेश की सियासत में एक बार फिर ब्राह्मण आम से खास हो  गया है। एक जमाने में जिस ब्राह्मण बिरादरी के  लोगों के  पास सत्ता क़ी चाभी हुआ  करती थी राजनीतिक दल अब उसे वोट बैंक की तरह  देख रहे हैं। राजनीतिक दलों को लग रहा  है कि भले ही  ब्राह्मण सीधे तौर पर सत्ता से दूर हो  गये हैं लेकिन सत्ता की चाबी उनके ही पास है और बगैर इनके समर्थन के  कोई भी  यूपी में  सरकार नहीं  बना सकता। २००७ के  विधान सभा चुनाव में  ब्राह्मणों ने बसपा की सरकार बनाकर इसे साबित भी  कर दिया था। पिछले चुनाव के  नतीजे  देखकर सभी राजनीतिक दलों की निगाह  प्रदेश के 12 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मणों पर लगी हुई  है। बसपा इसमें एक नम्बर पर है जो नहीं चाहती  है कि ब्राह्मण उससे हटे । राजधानी लखनऊ में ब्राह्मणों की  भीड़  जुटाकर बसपा ने यी संदेश देने की कोशिश की कि ब्राह्मण अभी भी उसी के  पाले में है और आगे भी रहेगी।
अस्सी के दशक तक यूपी की सियासत में सत्ता की कमान अधिकांश समय तक ब्राह्मणों के हाथ में हुआ  करती थी। राजनीतिक जानकारो  का कहना है कि उस समय तक ब्राह्मण कांग्रेस के साथ ख़डा  था। देश में मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के  बाद पिछ़दो   की एकजुटता के  साथ ही  ब्राह्मण कांग्रेस से खिसकने लगा। भाजपा ने राममन्दिर की तान छेड़ी तो ब्राह्मण कांग्रेस  से खिसक करके भाजपा के साथ खड़ा हो गया लेकिन भाजपा उन्हें लम्बे समय तक जोड़े रखने में सफल नहीं हो पायी. अटलबिहारी वाजपेयी के राजनीती में सक्रिय रहने तक ब्राह्मण भाजपा के साथ रहा उनके चुप बैठ जाने के साथ ही ब्राह्मण ने भाजपा का साथ छोड़ दिया. मुलायम सिंह के गुंडा राज से परेशान ब्राह्मण २००७ के चुनाव में बसपा के साथ खड़ा होकर उसकी सरकार बनवा दी. मतलब इक बार फिर ब्राह्मणों ने बता दिया क़ी सत्ता क़ी चाभी उन्ही के हाथ में है. यही वजह है क़ि आज २०१२ के दंगल में सभी दल ब्राह्मणों पर निगाह लगये हुए है. बसपा में ब्राह्मणों को वह सम्मान नही मिला जिसकी उन्हें उम्मीद थी. सब कुछ सतीश मिश्र के ही इर्द गिर्द घूमता रहा. इससे आम ब्राह्मणों में नाराजगी है. भाजपा और कांग्रेस ब्राह्मणों पर निगाह लगाये हुए है उन्हें लग रहा है क़ि १२ फीसदी ब्राह्मणों को  अगर अपनी तरफ कर लिया गया तो सत्ता उनके हाथ में होगी लेकिन अभी भी हालत साफ नहीं हुए है क़ि ब्राह्मण किधर जायेंगे. भाजपा अपने तरीके से ब्राह्मणों को लुभाने क़ि कोशिश कर रही है कांग्रेस का अपना तरीका है. अब देखना होगा क़ि इस चुनाव में ब्राह्मण किधर जायेगा?

5 टिप्‍पणियां:

  1. bhai saahab aapka vichaar sahi hai ab dekhna ye hai ki unt kis karwat baithega...

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  2. App ka vichaar ager baraman bhi samj jaye to aachha hoga.es amul vichaardhara ko hum aader karete hai ki janta bhi samj jaye.

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  3. इसके लिए स्वयं ब्राहमण ही जिम्मेदार हैं. यह दुर्भाग्य है कि राजनीति,नीतिशास्त्र का पाठ पढ़ने वाला ब्राहमण समाज अभी भी सूर्य जैसा प्रखर होकर भी जुगनुओं से राजनीति का पाठ सीख रहा हैं.
    अब प्रदेश का ब्राहमण वोट बैंक बन कर ही संतोष करे ---सही भी है... कोऊ होई नृप हमें का हानी.

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  4. rajneeti....apan ko samaj nai aati samjhay plz.

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  5. Brahmins have actually fallen from the place they once enjoyedand as rightly said as in the previous comment , the reason is partly themselves.
    There is no single leader who stands up for the cause of brahmins.The country is ruled by hence incompetent people.Brahmins now quitely have started moving out of the country to US and UK where they are enjoying greater success.India has totally forgotten Brahmins.

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