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सोमवार, 12 दिसंबर 2011

तारीख दर तारीख ही मिल रही सूचना आयोग में

दस  दिसंबर २०११ को आर टी आई पर एफ पी आर आई की तरफ से आयोजित वर्क शॉप में शामिल होने का मोका मिला. वर्क शॉप में आये एन जी ओ के लोग सूचना न मिलने से काफी परेशान थे. जैसे ही उनकी बोलने की बारी आयी तो  उनका गुस्सा मंच पर बैठे राज्य सूचना आयोग के सूचना आयुक्त सुभाष चंद पाण्डेय की ओर हो चला. सबका कहना था सूचना आयोग कोर्ट की तरह हो गया है. यहाँ भी लोगो को तारीख दर तारीख ही मिलती है. उसी समय मुझे भी इक वाकया याद आ गया...मेरा भी इक मामला सूचना न मिलने पर सूचना आयोग तक पहुच गया. उस समय पता लगा कि सूचना आयुक्त लोग सरकार का खुलेआम फेवर लेते है. मै जब कोर्ट में हाजिर हुआ तो  सूचना आयुक्त ने पुचा कि ये सूचना आप क्यूँ चाह रहे है.....इसका जवाब सुनने के बाद उन्होंने बोला ६ माह बाद की तारीख लगा दो. मैंने इस पर एतराज किया की जल्दी की तारिख लगवा कर मुझे सूचना दिलवा दीजिये तो वह बोले आप बहस कर रहे है...आपको बता दूँ की कोर्ट मै हाजिर था और सरकारी पछ गायब था...उसे चेतावनी नही दी गई और मेरी तारिख ६ माह बाद की लग रही थी. मेरे काफी बहस के बाद उन्होंने इक माह की तारीख तब दी जब उन्हें पता चल गया की मै पत्रकार हूँ. अगली तारीख से पहले ही मुझे सूचना मिल गई.....मै तो खुशनसीब था लेकिन वर्क शॉप में आये ढेर सारे लोग दो साल बाद भी सूचना आयोग में तारीख ही पा रहे है....सूचना नही दिला पा रहा है सूचना आयोग. और यही वजह है कि आयोग में शिकायतों का अम्बार लगता जा रहा है. सरकारी दफ्तरों से समय से सूचना मिल नही रही है जिस कारन लोगो को आयोग का दरवाजा खटकाना पड़ रहा है और वहन भी मिल रही है महज तारीख......ऐसे में इस कानून का क्या मतलब है.

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