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शनिवार, 23 जून 2012

अब रेल आम आदमी की नहीं रही

इस देश की रेल को क्या हो गया है. ट्रेन में अब आम आदमी को रिजर्व टिकट मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है. या तो वह १२० दिन पहले अपनी यात्रा का टिकट करावा ले. तत्काल का टिकट किसी आम आदमी को तो मिलता ही नहीं है. तत्काल या तो दलालों के हाथ चला जाता है या फिर रेल के कुछ कर्मचारियों के हाथ में. आम आदमी रेल का टिकट  लेने के लिए आधी रात से ही रिजर्वेसन गेट के बाहर धक्के खाने लगता है फिर भी उसे टिकट नही मिलता. टिकट मिलता भी है तो वेटिंग का जिस पर यात्रा करने पर टी टी रस्ते में वसूली करता है. इधर  मेरा कई बार गोरखपुर जाना हुआ लेकिन ट्रेन का टिकट नहीं मिल पाया. जिस गोरखनाथ एक्सप्रेस ट्रेन में आसानी से सीट मिल जाती थी उसमे अब २० दिन से ज्यादा कई वेटिंग चल रही है. गोरखपुर में रात को मैंने देखा  रिजर्वेसन दफ्तर के बाहर ५० से ज्यादा लोग रात को ३ बजे धक्का मुक्की कर रहे थे जबकि टिकट ८ बजे से मिलता है. यह सही है कि ट्रेन में भीड़ बढ़ी है ज्यादा  लोग अब  रिजर्वेसन टिकट पर चलना चाह रहे है लेकिन रेल महकमे ने इससे निपटने के क्या इंतजाम किये. रेल के अफसर अंग्रेजो की तरह रेल को चला रहे है उन्हें इसकी कोई परवाह नही है की यात्री को कितना कस्ट हो रहा है. रेल महकमे ने टिकट की वेटिंग कितनी होगी इसका कोई फार्मूला नहीं बना रखा है. जिस ट्रेन में ए सी की ६४ सीट है उसमे भी वेटिंग ७५ तक चली जा रही है. क्या यह ठीक है. वेटिंग तो रेल को उतनी ही जरी करनी चाहिए जितना कन्फर्म हो सके. वेटिंग का टिकट लेने वाले को अंत तक रेल यह दिलासा में देता है कि उसका टिकट कन्फर्म हो जायेगा लेकिन यात्रा के ३ घंटे पहले उसकी वेटिंग ही रह जाती है और उसे अपनी यात्रा को रद करना पड़ता है. फिर दूसरा टिकट कराता है और फिर उसका टिकट कन्फर्म नही हो पता है. आखिर आम आदमी अब ट्रेन का रिजर्वेसन किस तरह से हासिल करे. उसकी इतनी हैसियत नहीं है कि वह जहाज से सफ़र कर सके. उधर ट्रेन में सांसद और मंत्री कई ट्रेन में इक साथ टिकट करवा लेते है. उन्हें सरकार ने मुफ्त में टिकट करने का अधिकार जो दे रखा है. जनता से चुने गए ये लोग कभी जनता की तरफ भी देखते है.
इक समय था जब कहा जाता था कि सडक मार्ग का सफ़र अच्छा नहीं है लेकिन अब तो ट्रेन का सफ़र अच्छा नहीं रह गया है. सड़क का सफ़र बहुत ही सुहाना हो गया है. लखनऊ से गोरखपुर ८ साल पहले भी ट्रेन ६ घंटे में पहुचती थी आज भी वही हाल है. ट्रेन में उतना ही समय लगता है. मतलब आठ साल बाद भी कुछ नहीं बदला है लेकिन अब बस ४ से ५ घंटे में पहुँच जाती है. ये बस पहले ८ से ९ घंटे लेती थी. कई बस तो ३ से ४ घंटे में ही गोरखपुर से लखनऊ आ जाती है...तो क्या माना जाय रेल महकमा पीछे की तरफ जा रहा है और रोडवेज आगे जा रहा है. गोरखपुर से लखनऊ के बीच वैसे तो बहुत सी ट्रेने है लेकिन सुबह ७ बजे से लेकर १.३० बजे तक कोई भी ट्रेन गोरखपुर से लखनऊ के बीच नहीं है. आखिर रेल के अफसर क्या योजना बनाते है. क्या इस समय पर लोग यात्रा नहीं करते है. रेल इस देश के लोगो की मजबूरी है कोई और दूसरा साधन नहीं है नहीं तो लोग रेल को भुला देते. जो दुर्दशा रेल यात्रियों की कर रहा है उससे सब लोग वाकिफ जरुर होंगे. अब भी सुधर जाओ रेल के अफसरों और सेवा पर ध्यान दो. रेल को ठीक करो. ट्रेन में टिकट दिलाओ. यात्रा का समय घटाओ और ट्रेन चलवाओ........जय रेल जय हो देश                        

बुधवार, 20 जून 2012

करोड़ों के तालाब खुदे, पानी का अता पता नहीं


केंद्र सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ‘मनरेगा’ जैसी महत्वाकांक्षी योजना को दूसरे चरण में शहरों में भी लागू करने के लिए बेताब दिख रही है, लेकिन इसके पहले चरण में जिस तरीके से काम हो रहा है उससे गांवों की दशा में बड़े बदलाव की उम्मीद बेमानी ही लगती है। करोड़ों रुपये के खर्च से सैकड़ों पोखरे एवं तालाब खुदे लेकिन उसमें पानी भरने के लिए महीनों से बरसात का इंतजार हो रहा था। कारण कि पानी भरने का बजट मनरेगा में है ही नहीं। सड़कें बनीं, पर गरीबों के रास्ते अब भी कच्चे हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू के कई जिलों में मनरेगा के कामों की पड़ताल में यही हकीकत सामने आई है। मजदूरों की अहमियत जरूर बढ़ी है, अब दूसरी जगह भी उन्हें डेढ़ सौ रुपये तक मजदूरी मिल जाती है। हालांकि सालभर काम न मिलने से उनकी जीवनशैली में भी खास बदलाव नहीं आया।


गोरखपुर से १५ किमी दूर है भौवापार गांव। यहां चिलोधर, हरिजन बस्ती, उत्तर टोला और शिव मंदिर के पास के पोखरों पर मनरेगा के लाखों रुपये खर्च हुए पर पानी नहीं भरा गया। शिव मंदिर के पास के प्राचीन पोखरे के लिए पूर्व सांसद राज नारायण पासी ने भी १०.६ लाख रुपये दिए थे। अब मनरेगा के ३.६२ लाख रुपये भी इस पर खर्च हुए, पर पानी के लिए महीनों से मानसून का इंतजार हो रहा था। ग्राम प्रधान का कहना है कि तालाबों में पानी भरने को प्रावधान मनरेगा में है ही नहीं।


वाराणसी जिले में ५७६ आदर्श तालाब खुदे। मुख्य विकास अधिकारी शरद कुमार सिंह नहर किनारे के २७ तथा नलकूप के पास के १६४ तालाबों में पानी होने का दावा करते हैं, पर गांव वाले कुछ और ही कहते हैं। गांव बसनी की प्रधान रेखा पटेल का कहना है कि तालाब में पानी भरने का बजट ही नहीं है। मुख्य विकास अधिकारी भी बताते हैं कि तालाब भरने के लिए मनरेगा में बजट नहीं है। तालाबों की खुदाई के बाद सिंचाई और नलकूप विभाग को सूचना दे दी जाती है। जहां नहर या नलकूप की सुविधा नहीं है उन तालाबों को प्राकृतिक तरीकों से ही भरा जाता है। उधर, नलकूप विभाग के एक्सईएन एके सिंह ने बताया कि तालाबों को भरने के लिए बजट नहीं मिल रहा है। जिन तालाबों के निकट नलकूप हैं उनमें विभाग पानी भरवा रहा है।


झांसी जिले के मोठ ब्लाक में पांच तालाब दो साल बाद भी सूखे हैं। किसानों का कहना है कि जिस उम्मीद से उन्होंने तालाब के लिए जमीन दी, उसी पर पानी फिर गया। मछली पालन का सपना तो सपना ही रह गया। गांव के कुछ किसान जरूर खुशनसीब हैं, जिनके खेतों में कुएं का निर्माण हुआ था। मनरेगा के तहत मजदूरों को काम देने की अनिवार्यता के चलते जिले के ज्यादातर इलाकों में सड़कों पर लेप करवाकर खानापूरी की जा रही है।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

वोटर की जय हो ................

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के  पहले चरण के  मतदान में राज्य के  वोटरो  की जय हो  बोलने के  लिए लोगों को मजबूर कर दिया है। आजादी के  बाद इतिहास में यह  पहला मौका है जब विधान सभा के  लिए करीब 62 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है। चुनाव आयोग की टीम  इस बढे  मतदान को लेकर बेद खुश है और अपनी वाहवाही में लगी  है। आयोग को लगता है कि यह  सब उसके  प्रयास से संभव हुआ। आयोग छ माह  से ज्यादा समय से लोगों को अपने वोट के  प्रति जागरुक करने का अभियान चला रखा  है। आयोग का भी इसमें  बड़ा  योगदान है उसकी भी  जय बोला  जाना  चाहिये  लेकिन चुनावा के  निराश वातावरण में इतनी बड़ी  संख्या में खराब मौसम के  बावजूद बूथ तक पहुचना  कोई और ही  संकेत देते हुए  नजर आ रहा  है। मैने कई क्षेत्रों के  दौरे  में पाया था कि वोटर इस बार पूरी तरह  से चुप था। वह  किसी के  पक्ष या विपक्ष की बात मीडिया के साथ नही कर रहा है। उसका गुस्सा दिखा तो सभी राजनीतिक दलों की तरफ। फिर भी वोट देते समय स पर जाति व धर्म तो हावी रहा ही साथ ही  पार्टियों के  कार्य का ट्रैक रिकार्ड  भी  देखा। जिस पार्टी का जैसा ट्रैक रिकार्ड उसकी समझ में आया उसी के मुताबिक वोट किया। इस बार एक खास बात और देखने को मिली कि वोटरो ने आपस में वोट पर चर्चा तो की लेकिन से इसे  किसी पब्लिक फोरम पर नहीं  आने दिया। मीडिया  भी  शायद इसी वजह  से कोई  आकलन नही  कर पा रहा  है। दौरे में मैने देखा वोटर कि  मुझसे तो चर्चा नहीं  कर रहा  था और जब वोट डालने की बारी आयी तो बूथ पर लाइन में ख़डा हो  गया। इससे ये  साफ है  कि वोटर के  मन में जो कुछ  भी  चल रहा  था वह  उसे उजागर करने के  पछ में नहीं  था बल्कि वोट डालकर ही  बताने के  मूड में  था। करीब 15 फीसदी तक ज्यादा मतदान इस बार हुआ । ये  अब तक के  चुनावी इतिहास की बड़ी  घटना है। गांव ही  नही  शहर में  भी बड़ी  तादात में लोग वोट डालने के लिए घर से बाहर निकले। जो पहले कभी वोट नही  डाले थे  इस बार वोट डालने गये इससे साफ  होता है कि उनके  मन में सरकारो के  प्रति जो गुस्सा चल रहा  था उसे इस बार किसी नतीजे पर पुंचाना चाते थे। वोट का परसेंटेज बढने से  भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के  नेता आज शाम को कुछ ज्यादा ही  खुश दिखे लेकिन युवा वोटर जो पहली बार वोट डालने गया उसने किधर रुख किया ये  तो छ मार्च को ही  पता चल सकेगा । बहरहाल वोटर ने चुनाव में इस बार यूपी में इतिहास लिख दिया।

शनिवार, 21 जनवरी 2012

बसपा को किसी कीमत पर समर्थन नहीं


भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर काफी आशान्वित हैं। उन्हें राज्य में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलते दिख रहा है। राज्य में सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी के कामकाज से खफा गडकरी ने एलान किया कि उनकी पार्टी किसी भी कीमत पर बसपा को समर्थन नहीं करेगी। प्रदेश में पार्टी के प्रदर्शन, टिकट बंटवारे को लेकर मचे घमासान और कुशवाहा प्रकरण पर पार्टी में उठे बवंडर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष से हमारे संवाददाता देवकी नंदन मिश्र ने बातचीत की। पेश हैं संपादित अंश :-
 चुनाव में आपके क्या प्रमुख मुद्दे हैं? 
गुण्डाराज व भ्रष्टाचार को खत्म करके उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाना। यहां पर रामराज स्थापित करना हमारा लक्ष्य है। जहां पर किसानों व उद्योगों को 24 घंटे बिजली मिले और बेरोजगारों को रोजगार। आप रामराज स्थापना की बात तो कर रहे हैं लेकिन राम मन्दिर के मुद्दे पर भाजपा को सत्ता मिली और उसके लिए कुछ खास नहीं कर पाये? भाजपा का नजरिया राममन्दिर के प्रति हमेशा से साफ रहा है। भगवान राम की जन्मस्थली में उनका भव्य मन्दिर बनना चाहिए। रामराज की बात हम इस वजह से करते हैं क्योंकि सतयुग में वह आदर्श राज था। अन्य प्रदेशों में जहां भाजपा की सरकारें हैं हम रामराज स्थापना की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं। भाजपा भी तो कुशवाहा को पार्टी में लेकर अपने रास्ते से भटक गयी है? बाबू सिंह कुशवाहा ने खुद ही अपनी सदस्यता स्थगित करने का अनुरोध किया था जिसे स्वीकार कर लिया गया है। अब भाजपा के लिए कुशवाहा का प्रकरण समाप्त हो गया है। यूपी में अगर भाजपा को सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिली तब आप क्या करेंगे? बहुमत न मिलने पर हम विपक्ष में बैठेंगे। समाजवादी पार्टी या बसपा से किसी भी तरह का समझौता नहीं करेंगे। राज्य में सत्तारूढ़ बसपा को तो किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं करेंगे। प्रदेश की जनता भाजपा को स्पष्ट बहुमत देने जा रही है। टिकट को लेकर भाजपा में जबरदस्त घमासान मचा है? भाजपा एक लोकतांत्रिक पार्टी है। टिकट का वितरण काफी विचारिवमर्श के बाद किया गया है। प्रदेश संगठन के समन्वय से आधे से ज्यादा टिकट दिये गये हैं। सव्रे को भी ध्यान में रखा गया है। हर सीट से कई लोग टिकट चाह रहे थे। टिकट किसी एक को ही दिया जा सकता है। सबको साथ लेकर चलने की कोशिश हो रही है। बसपा को किसी कीमत पर समर्थन नहीं

शनिवार, 7 जनवरी 2012

ग्रहों के दुराग्रहों से बचने की जुगत


चुनाव निकट हैं। बदले माहौल में विजय की समस्या विकट है। दांव सही पड़े, महारथियों को यह चिंता सताना वाजिब है। कुछ ने मनौती फिक्स कर ली तो कुछ ने अनुष्ठानों के लिए एडवांस बुकिंग करा दी। ग्रहों के चाल-चलन और मारकशक्ति से सभी योद्धा वाकिफ हैं। ग्रहों की तिरछी चाल का असर कम करने के लिए रणवीरों ने रत्नों और नगों का वजन घटाना- बढ़ाना शुरू दिया है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। चुनावी वैतरणी पार करने के लिए कुछ ने टोटकों पर विास जताया है तो कुछ ने बाबाओं पर। धार्मिक गुरुओं, ज्योतिषाचार्यो की एडवांस बुकिंग की जा रही है ताकि वे पूरे चुनाव उन्हें पल-पल पर गाइडेंस देते रहें। ताकि अशुभ होने की कोई गुंजाइश न रहे। बहुतों ने पिछला चुनाव जितवाने वाले गैर प्रदेशों के तांत्रिकों तक की तलाश शुरू करा दी है। हरिद्वार, लखनऊ, दिल्ली, विंध्याचल, अयोध्या, मथुरा व काशी के बाबा और धार्मिक गुरुओं के द्वारे लम्बी-चौड़ी लग्जरी गाड़ियों की लम्बी-लम्बी कतारें लगने लगी हैं। अधिसंख्य नेताओं के भाग्य ग्रहनक्षत्र के तराजू पर तौले जा चुके हैं। जिनका भाग्य कमजोर है उन्हें मजबूत करने और जिनका मजबूत है उन्हें और मजबूत करने की जुगत बैठायी जा रही है। टोटके, रत्न, नग व यज्ञ बटुओं के वजन के हिसाब से डन किये जा रहे हैं। एक जाने-माने ज्योतिषाचार्य का कहना है कि शाहजहांपुर जिले एक विधायक जिनकी सीट और टिकट कट गया था, यज्ञ की ताकत से ही भाजपा से उम्मीदवारी का हक मिला है। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य विनोद चतुव्रेदी का कहना है कि ज्योतिषी बिरादरी जिन बिन्दुओं पर विशेष विचार कर रही हैं उनमें ग्रहों का दोष व शांति, शुभ अंक व तारीख, शुभ दिन व रंग शामिल हैं। वह मजार जहां की दुआ, कमजोर भाग्य की दवा बने और वह धर्मस्थल जो विजय पताका फहराने में मददगार बने, वहां मत्था टेकने पर भी एस्ट्रोलोजर गौर कर रहे हैं। ज्योतिषाचार्य डा. अरविन्द त्रिपाठी का कहना है कि इस बार नये वर्ष के प्रथम मास से चुनाव का आगाज हो रहा है और मकर संक्रांति के बाद अंजाम पर पहुंच रहा है, सभी की राशियों के ग्रहों की चाल में बदलाव तय है। अनुकूल परिणाम के लिए उपाए अपनाए जा रहे हैं। वह बताते हैं कि मनमुताबिक रिजल्ट के लिए उम्मीदवार व उनके परिजन सलाह लेने आने लगे हैं। सभी जानते हैं प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल करने में नग-रत्न और पूजा-अनुष्ठान जरूरी होता है। कुंडली और श्रद्धा मुताबिक उपचार तय किये जाते हैं जिनमें घर के दरवाजे पर ग्रह शोधक पौधा लगाने, स्टोन,

अगर मीडिया रंडी है


अगर मीडिया रंडी है तो मै इसका सच्चा दलाल हु



जय हो -  जो लोग मुझे फ़ोन - मेल करके  गाली  दे रहे है मेरे लिए यह गाली नहीं बल्कि आप सभी लोगो की सौगात है | जब से मीडिया दलाल .कॉम की शुरुआत की है तब   से गाली देने वालो की लाइन लग गयी है हर किसी का अलग कथन है |

मीडिया को  रंडी , कोठा  , दलाल कहने वालो  मीडिया दलाल डाट काम  में सभी का स्वागत करता है | अगर आप मुझे गाली देते हो तो आपकी सभी गालीओ को   सराखो पर रखता हु |

मुझे बिल्कुल कहने में गुरेज नहीं है अगर मीडिया रंडी है तो मै इसका सच्चा दलाल हु  | भाई सोच सोच में फर्क होता है जब से  मीडिया दलाल  डाट.कॉम  ने लोगो की   पोल खोलना शुरू  किया है तब  से  लोग मुझे  रंडी और दलाल का दर्जा देने लगे है   |


अगर सच लिखने में दलाल,  भडुआ , रंडी का दर्जा मिलेगा तो मै सच लिखता रहूगा चाहे कुछ भी क्यों न हो ? ये मेरा वादा है |


संपादक 
सुशील गंगवार
फ़ोन -०९१६७६१८८६६
साक्षात्कार.कॉम
मीडिया दलाल .कॉम