शशि थरूर की
तीसरी पत्नी सुनंदा
पुष्कर की संदिग्ध
हालत में मौत
हो गई. यह
कोई पहला मामला
नही है जिसमे
पति पत्नी और
वो (दोस्त) के
बीच किसी महिला
ने जान दी
है. अब
तक इस तरह
के लाखो मामले
प्रकाश में आ
चुके है. सोशल
संगठन चलने वाले
कई शोध कर
चुके है लेकिन
इस तरह के
मामलो का कोई
हल नही निकल
रहा है. समाज
का हर वर्ग
यह पीड़ा झेल
रहा रही है.
शक की बुनियाद
पर ही यह
मौते होती है.
यहा मेरा एक
सवाल है कि
क्या कोई महिला
और पुरुष महज
दोस्त नही हो
सकते है? अगर
उनमे दोस्ती होती
है उसका सेक्स
तक जाना जरुरी
है? मुझे लगता
है कि इस
तरह की सोच
सही नही है.
जिस तरह से
दो पुरुषो के
बीच गहरी दोस्ती
होती है उसी
तरह से किसी
महिला और पुरुष
के बीच भी
सिर्फ गहरी दोस्ती
हो सकती है
और उसकी मिसाले
भी दी जा
सकती है. कृष्ण
और राधा की
दोस्ती और प्रेम
की आज भी
मिसाले दी जाती
है और आगे
भी दी जाती
रहेगी। क्या राधा
और कृष्ण के
प्रेम या दोस्ती
की वजह से
कृष्ण और उनकी
धर्म पत्नी रुक्मणि
के बीच कभी
कोई विवाद उत्पन्न
हुआ? जवाब मिलेगा
नही फिर आज
शक की वजह
से लोग अपनी
जान क्यूँ दे
रहे है? हमारी
देश की नारी
शक्ति को यह
समझना होगा कि
अगर उनके पति
का किसी और
महिला से गलत
सम्बन्ध भी है
तो भी अपनी
जान देने की
बजाय उस स्थिति
से डटकर मुकाबला
करना चाहिए। सुनंदा
पुष्कर की यह
तीसरी शादी थी.
उनकी दो शादिया
भी शायद गलत
संबंधो कि वजह
से टूटी होगी।
चाहे यह सम्बन्ध
पहले सुनंदा ने
कायम किये हो
या फिर उनके
उस पति ने.
सुनंदा को तो
इसका अच्छा अनुभव
था फिर वह
डिप्रेसन में किस
वजह से चली
गई समझ में
नही आ रहा
है. सुनंदा पुष्कर
को इस मामले
डटकर मुकाबला करना
चाहिए था. अगर
उन्हें पता चल
गया था कि
उनके पति शशि
थरूर की पाकिस्तानी
पत्रकार मेहर से
दोस्ती है तो
सुनंदा को पहले
यह देखना चाहिए
था कि इस
दोस्ती से kya शशि थरूर
का उनके प्रति
प्यार कुछ कम
हो रहा था?
मुझे लगता है
कि जिस तरह
से थरूर सुनंदा
की मौत को
लेकर दुखी नजर
आये उससे तो
नही लगता कि
उनके सुनंदा के
साथ प्रेम में
कोई कमी आयी
रही होगी। महिलाओ
में अपने पति
और प्रेमी के
किसी गैर महिला
के साथ दोस्ती
को लेकर जो
शक पैदा होता
है वह निहायत
ही खतरनाक है.
हर घर में
शायद इस तरह
का शक हर
दम्पति के जीवन
में इक दो
बार जरुर आता
है. कई घर
इसी शक के
बिना पर टूट
जाते है लेकिन
कई के घर
नही टूटते है.
मेरी सोच
है कि भारत
में भी जापान
का कल्चर लागू
होना चाहिए। जिस तरह
जापान में हर महिला को छूट है की वह अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष को प्रेमी या
दोस्त बना सकती है उसी तरह यहा भी होना चाहिए। जापान की महिलाये अपने पति की खूब सेवा
करती है. शायद भारत की महिलाये भी अपने पति
की इतनी सेवा न करती हो. मेरे एक पत्रकार साथी
ने अपने जापान के दौरे का यात्रा वृतांत सुनते हुये जानकारी दी थी कि जापान
की पत्निया अपने पति की भारत की पत्नियों से ज्यादा सेवा करती है. बल्कि वह मित्र तो
जापान की महिलाओ से इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने अपने बेटे को जापानी बहू लाने को
कहे.
आप सोच रहे होंगे कि इस पत्रकार को ब्लाग लिखने की जरुरत क्यों आन पडी, जब इसके पास लिखने के लिए पहले से एक प्रमुख समाचार पत्र व टेलीविजन है। आपकी सोच ठीक है लेकिन मेरा मानना है कि अपनी ढेर सारी भावनाएं व विचार हम उस समाचार पत्र में नहीं लिख सकते। इसके लिए इण्टरनेट ब्लाग मुझे बेहतर माध्यम लगा। मेरे ब्लाग पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी साथ ही आपके सुझावों से इसमें बदलाव करने में यूपी के इस बन्दे को सहूलियत होगी।
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विषय सामयिक है। मेरे दृष्टिकोण में इसका महत्वपूर्ण कारण स्वयं का इगो बहुत अधिक होना है। लेकिन मित्र जिस तरह से पुरुष की स्त्री मित्र पर नज़रिया आया है क्या अपनी पत्नी को पुरुष मित्रों की लम्बी श्रृंखला बंनाने की छूट दे सकते हैं।
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