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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

सब राजनीति ही कर रहे है सिख दंगो पर

आखिर देश के लोगो की भावनाओ के साथ ये राजनीतिक दल कब तक खिलवाड़ करके वोट लेकर शासन करते रहेंगे? देश के लोगो को राजनीतिक दलों की इस तरह की मंशा क्यूँ समझ में नही आ रही है? मुजफरनगर में हुये दंगे की आग अभी शांत भी नही हुई थी कि अब ८४ के दंगो का जिन्न बाहर आ गया. इस जिन्न को किसी सिख समुदाय के लोगो ने नही निकाला बल्कि राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल ने. राहुल ने यह कहकर सिखों की दुखती रग को छुआ कि इन दंगो में कुछ कांग्रेसी नेताओ के भी हाथ थे. राहुल को लगा कि उनके इस तरह के जवाब से सिख समुदाय की सिम्पैथी कांग्रेस के साथ होगी लेकिन हुआ इसके ठीक उलट, समुदाय के लोग भड़क गये और उस कांग्रेसी का नाम पूछने लगे जिसकी तरफ राहुल ने इशारा किया था. अब राहुल और कांग्रेस के लिए यह नई मुश्किल खड़ी हो गई जिसने दस साल तक इक सिख को प्रधानमंत्री बनाये रखा. देश में सिखों की आबादी करीब १.९ फीसद है. पंजाब के अलावा दिल्ली की कई सीटो पर वह निर्णायक की भूमिका में होते है. इसी बीच आम आदमी पार्टी के सी एम् अरविन्द केजरीवाल ने सिख दंगो के लिये नए सिरे से एस आई टी बनाकर जाँच करने की मांग लेफ्टिनेंट गवर्नर से कर दी. केजरीवाल की नजर सिख समुदाय के देश भर के वोटो पर है जिसे वह इस तीर के जरिये २०१४ के चुनाव में हासिल करना चाहते है. सिखों का कहना है कि उन्हें दिल्ली में हुये कत्लेआम में इंसाफ नही मिला. जबकि इस दंगे की जाँच के लिए ६ से ज्यादा कमीशन बन चुके है. कोर्ट में अभी यह मामला चल रहा है लेकिन सजा किसी को नही हुई. मेरा सवाल है कि क्या सज्जन कुमार को सजा हो जाय तो मान लिया जायेगा कि इंसाफ मिल गया? मेरा साफ मानना है कि दोषी कोई भी हो कितना भी ताकतवर हो लेकिन उसे दंड मिलना चाहिये लेकिन अपने देश की नयायपालिका की कच्छप रफ़्तार के बारे में तो सभी जानते है. न्याय मांगने वाला स्वर्ग सिधार जाता है लेकिन न्याय नही मिलता. जैसे सब मामलो में होता है वैसा ही इस प्रकरण में भी हो रहा है लेकिन क्या फिर से इक जाँच से सिखों को इंसाफ मिल सकेगा? कोई कानून का जानकार बोलेगा नही. एस आई टी तो जाँच एजेंसी होगी फिर सजा के लिए उसे कोर्ट ही जाना होगा. कोर्ट की रफ़्तार का सबको पता है. यहा कानूनी द्रष्टि से अगर देखा जाय तो एस आई टी को ३० साल बाद उस घटना में क्या सबूत मिलेगा? घटनास्थल का भी सही तरीके से आकलन नही कर पाएगी जाँच एजेंसी. मै यह जानता हूँ कि केजरीवाल को सिखों से कोई हमदर्दी नही है बल्कि उन्हें सिखों की भावनाओ को कुरेदकर महज २०१४ में वोट लेना है. अगर हमदर्दी थी तो उन्होंने इसके लिए पहले कभी आन्दोलन क्यों नही किया? केजरीवाल जानते है कि इस जाँच का आदेश वह नही दे सकते है इस वजह से मुद्दा उठाकर टी वी चैनलों पर इक नई तरह की बहस जरुर शुरू करा दी है. मेरी जानकारी में आया है कि केजरीवाल ने चुनाव के दौरान बाटला हाउस कांड की भी नए सिरे से जाँच कराने को कहा था. उनके इस तरह के कृत्य से समझा जा सकता है कि केजरीवाल वोट के लिये आतंकियों की भी पैरवी कर सकते है. केजरीवाल से देश के लोगो को कुछ उम्मीदे थी लेकिन वह सत्ता पाने की और भी जल्दी में है. ऐसे में लगता है कि वह कांग्रेस और भाजपा से भी खतरनाक है.

1 टिप्पणी:

  1. ऐसे में लगता है कि वह कांग्रेस और भाजपा से भी खतरनाक है. I agreed.

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