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मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

आखिर मीडिया काहे पीछे पड़ा है अखिलेश यादव के!

कांग्रेस के बाद उत्तर प्रदेश में दो ही सरकारे आयी जिन्हें मीडिया फ्रेंडली सरकार कहा जा सकता है. राजनाथ सिंह की सरकार या फिर मुलायम और अखिलेश यादव की सरकार. अखिलेश यादव की सरकार से पहले प्रदेश में मायावती की सरकार थी लेकिन मीडिया के लोग रोज उस सरकार के खिलाफ खबरे नही लिखा या चलाया करते थे. वजह उस सरकार की कार्यशैली से मीडिया भी भयभीत रहता था. उस समय मीडिया के कई बड़े पत्रकारों को बेइज्जत कर दिया गया लेकिन पत्रकार पुरे प्रयास के बाद भी कोई कारवाई नही करा सके. कम से कम लखनऊ में आज तो यह माहौल नही है. हो सकता है मीडिया के लोग आज इस बात को न माने लेकिन हकीकत यही है. अखिलेश यादव की सरकार बनने के साथ से ही मीडिया उनके पीछे ही पड़ा हुआ है जबकि मीडिया के लोगो को सर्वाधिक ओबलाईज इसी सरकार ने किया है. मान्यता प्राप्त पत्रकारों को पी जी आई में मुफ्त ईलाज के अलावा तीन पत्रकारों को सूचना आयुक्त बनाया. और भी कई सहुलियते इस सरकार ने मीडिया के लोगो को दी. इतना ही नही खुद नेताजी के अलावा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव किसी भी मुद्दे पर बयान देने के लिये उपलब्ध रहते है. मै यह नही कह रहा हूँ कि मीडिया भाजपा के फेवर में काम कर रहा है लेकिन बात कुछ तो है जिस वजह से सपा का माहौल उत्तर प्रदेश में मीडिया खराब कर रहा है. सोमवार को कानपुर में जिस तरह से एक पत्रकार ने अखिलेश यादव से नरेंद्र मोदी को लेकर सवाल पूछा उससे कोई भी झल्ला जायेगा. पत्रकार होने का यह कतई मतलब नही है कि वह पार्टी बनकर सवाल पूछे. कुछ दिन पहले मुजफ्फरनगर में किसी शादी में डांस हो रहा था एक टीवी चैनल ने उस डांस को वहा हुये दंगे से जोड़कर खबर चला दी. मेरी समझ में नही आ रहा है कि जहा दंगा हुआ हो वहा पर क्या कोई शादी समारोह नही होगा और उसमे कोई मंत्री शामिल नही होगा? मीडिया का इस तरह का रोल ठीक नही है. मीडिया के लोग क्या क्या कर रहे है क्या किसी को पता नही है. सरकार में बैठे लोग उनकी कारगुजारियो से पूरी तरह वाकिफ होते है. मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर ही जिस तरह की रिपोर्टिंग सामने आयी ऐसा लग रहा था जैसे सरकार ने ही दंगे को कराया हो. इस तरह की रिपोर्टिंग से मीडिया की साख पर भी असर पड़ रहा है. मीडिया के भाइयो को इस बात को समझना होगा और अपने में बदलाव लाना होगा तभी उनकी साख वापस लौट पायेगी. 

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