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सोमवार, 3 मार्च 2014

सहाराश्री से बड़ा देशभक्त शायद ही दूसरा कोई हो

आज की तारीख में सहारा और इस कम्पनी के मुख्य अभिभावक सहाराश्री सुब्रत राय सहारा जी खूब चर्चा में है. सेबी के मनमानेपन की वजह से सहारा का नाम लोगो की जुबान पर है. लोग तरह तरह की चर्चाये कर रहे है लेकिन यह कम लोग जानते होंगे कि सहारा श्री से बड़ा देश भक्त शायद कोई नही है. सहारा देश का इकलोता ऐसा संस्थान  है जहा कोई भी मीटिंग प्रारम्भ होने से पहले भारत माता के चित्र पर पुष्प चढ़ाकर दीप जलाया जाता है. सहारा शहर में भारत माता की भव्य मूर्ति स्थापित है. मैंने तो पहली बार सहारा शहर में भारत माता की प्रतिमा को देखा. देश के कई हिस्सों में मेरा जाना हुआ लेकिन कही भी इस तरह की कोई प्रतिमा नही मिली. भारत माता के प्रति इस तरह का सम्मान सहारा श्री की तरफ से प्रस्तुत किया जाना उनके देश प्रेम को ही दर्शाता है. यही नही सहारा में जब कोई मीटिंग होती है, उसका समापन राष्ट्रगान के साथ होता है. मेरी जानकारी में देश में कोई ऐसा संस्थान नही है जहा मीटिंग का समापन राष्ट्रगान से होता हो. देश के ढेर सारे लोग इसी वजह से सहारा से जलन रखते है. सेबी भी कुछ इसी तरह कर रहा है. सेबी को कम्पनी की तरफ से जो ५१२० करोड़ दिया गया है उसे सेबी निवेशको को क्यूँ नही वापस कर रहा है. सेबी को यह भी समझना चाहिये कि कोई भी जमाकर्ता क्यूँ सहारा के किसी दफ्तर या सेबी के पास पैसे मांगने क्यूँ नही जा रहा है. अगर कम्पनी पर किसी का बकाया होता तो लोग सहारा के दफ्तर में तो जाते. सेबी के मनमाने कदम के बाद भी कोई जमाकर्ता सहारा के दफ्तर पर नही जा रहे है. वजह जमाकर्ता को सहारा पर पूरा भरोसा है. वह जानते है कि सहारा के पास उनका धन सुरछित है. सहारा सरकारी नियमो के तहत ही लोगो के पैसे जमा करता है और समय पर वापस करता है. आज भी रोज लोग अपने पैसे जमा करने के साथ ही निकासी भी कर रहे है. सेबी को इस पर भी नजर दौड़ानी चाहिये. सहारा देश की पहली संस्था है जिसने रेलवे के बाद सबसे ज्यादा नौकरी दी है. सहाराश्री को सहारा के कर्तव्य योगियों के साथ ही विभिन्न वर्गों के लोग कलयुग का भगवन मानते है. एक दशक से ज्यादा समय तक सहारा क्रिकेट का प्रायोजन करता रहा. यह सहाराश्री जी के देश प्रेम को ही दर्शाता है.

शनिवार, 1 मार्च 2014

प्राणदायिनी माँ गंगा की काशी में यह दुर्दशा

ऐतिहासिक एवं पौराणिक नगरी काशी अपनी दो खाशियतो की वजह से पूरी दुनिया के लोगो का आकर्षण का केंद्र आज भी बनी हुई है. बाबा विश्वनाथ जी का मंदिर और प्राणदायिनी माँ गंगा. लाखो भक्त रोज बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर में माथा टेकते है लेकिन उनमे से कम ही होंगे जो गंगा में स्नान करते है. वजह गंगा का मैली और दूषित होना. हिमालय से निकली गंगा मैली नही है बल्कि रास्ते में लोग कचरा डालकर गंगा को मैली कर रहे है. वाराणसी में माँ गंगा का तो और भी बुरा हाल है. वाराणसी में वैसे तो छोटे बड़े तीन दर्जन से ज्यादा घाट है जो अंग्रेजो के ज़माने में रियासतों ने अपने अपने परिवार वालो को गंगा स्नान के लिये बनवाया था. आज भी घाटो की हालत अच्छी है लेकिन वहा नहाने वाले कम ही नजर आते है. वाराणसी में मैंने कभी भी गंगा में स्नान नही किया था. इस महाशिवरात्रि पर बाबा के दर्शन से पहले मैंने विचार किया कि गंगा में डुबकी लगा ली जाय. मै और मेरे मित्र विवेक श्रीवास्तव निकल पड़े गंगा स्नान के लिये. कई लोगो से पूछताछ के बाद तय किया गया कि रविदास घाट सबसे अच्छा है वही चलकर स्नान किया जाय. हम लोग रविदास घाट पर पहुचे तो पता चला कि यहाँ नहाना कचरे में नहाने जैसा है. घाट के बगल में ही नाले का पानी गंगा जी में बहाया जा रहा था. कुछ लोग घाट पर बैठकर कपडे धुल रहे थे. उन लोगो ने भी यहा नहाने से मना किया. फिर तय किया गया कि अस्सी घाट पर चलकर नहाया जाय. गाड़ी से हम लोग सीधे अस्सी घाट पहुचे. वहा पर कुछ लोग अलग अलग टोलियों में स्नान कर रहे थे. हम लोग भी नहाने की तैयारी कर चुके थे. एक नाव पर खड़े होकर विवेक गंगा जी में उतरे. गंगा जी में उनके पैर रखते ही नीचे का कचरा (काई) उफनाकर ऊपर आने लगा. उनके पैर में घुटने तक कचरा भर गया. फटाफट वह पैर को धुलकर नाव पर आये और बगैर नहाये ही कपडा पहन लिये. माँ गंगा में इस तरह का कचरा देखकर मान दुखी हो गया. फिर हम लोग नाव से गंगा जी के दुसरे तरफ गये और वहा नहाया गया. उस पर गंगा का निर्मल जल जो होना चाहिये था वह नही था. फिर भी हम लोग वही स्नान करने के बाद बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन किये. मैंने जब जानकारी की तो पता चला कि कई संगठनों ने गंगा सफाई के नाम अरबो रूपये सरकार से लिये लेकिन गंगा काशी में जब इतनी गन्दी है तो बाकी जगह क्या हाल होगा. अस्सी ही नही बल्कि काशी के सभी घाटो का यही हाल है. किसी घाट पर गंगा नहाने लायक नही रह गई है. जो लोग काशी में इस पार स्नान करते है उनके मान में यह धारणा रहती है कि गंगा में डुबकी लगाने से पाप कटते है. इस वजह से ही कचरे के बाद भी लोग उसमे डुबकी लगते है. मैंने संगम में इलाहाबाद के अलावा हरिद्वार में गंगा जी में कई बार स्नान किया लेकिन कही भी गंगा जी में कचरा नही मिला. फिर काशी में गंगा जी का यह हाल क्यूँ है? लगता है प्रशासन का ध्यान गंगा व् घाटो की सफाई पर नही है. सरकार की तरफ से इसके लिये बजट तय है लेकिन कभी इस पर ध्यान नही दिया जाता है. यह प्राणदायिनी माँ गंगा के लिये ठीक नही है. पिछले लोक सभा चुनाव की कवरेज के लिये भी मेरा वाराणसी आना हुआ था. कांग्रेस और भाजपा के अलावा सभी दलों के प्रत्याशियों ने बातचीत में गंगा की दुर्दशा का मुद्दा उठाया था. मुझे ध्यान है मैंने स्टोरी की हेडिंग लगायी थी कि -जो गंगा की बात करेगा वही काशी पर राज करेगा. पांच साल का समय गुजर गया लेकिन गंगा जैसी थी वैसी ही है. फिर सांसदी का चुनाव आ गया और फिर लोग गंगा के नाम पर वोट मांगने का ताना बाना बन रहे है. देखिये इस बार क्या होता है.