ऐतिहासिक एवं पौराणिक नगरी
काशी अपनी दो खाशियतो की वजह से पूरी दुनिया के लोगो का आकर्षण का केंद्र आज भी
बनी हुई है. बाबा विश्वनाथ जी का मंदिर और प्राणदायिनी माँ गंगा. लाखो भक्त रोज
बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर में माथा टेकते है लेकिन उनमे से कम ही होंगे जो गंगा
में स्नान करते है. वजह गंगा का मैली और दूषित होना. हिमालय से निकली गंगा मैली
नही है बल्कि रास्ते में लोग कचरा डालकर गंगा को मैली कर रहे है. वाराणसी में माँ
गंगा का तो और भी बुरा हाल है. वाराणसी में वैसे तो छोटे बड़े तीन दर्जन से ज्यादा
घाट है जो अंग्रेजो के ज़माने में रियासतों ने अपने अपने परिवार वालो को गंगा स्नान
के लिये बनवाया था. आज भी घाटो की हालत अच्छी है लेकिन वहा नहाने वाले कम ही नजर
आते है. वाराणसी में मैंने कभी भी गंगा में स्नान नही किया था. इस महाशिवरात्रि पर
बाबा के दर्शन से पहले मैंने विचार किया कि गंगा में डुबकी लगा ली जाय. मै और मेरे
मित्र विवेक श्रीवास्तव निकल पड़े गंगा स्नान के लिये. कई लोगो से पूछताछ के बाद तय
किया गया कि रविदास घाट सबसे अच्छा है वही चलकर स्नान किया जाय. हम लोग रविदास घाट
पर पहुचे तो पता चला कि यहाँ नहाना कचरे में नहाने जैसा है. घाट के बगल में ही
नाले का पानी गंगा जी में बहाया जा रहा था. कुछ लोग घाट पर बैठकर कपडे धुल रहे थे.
उन लोगो ने भी यहा नहाने से मना किया. फिर तय किया गया कि अस्सी घाट पर चलकर नहाया
जाय. गाड़ी से हम लोग सीधे अस्सी घाट पहुचे. वहा पर कुछ लोग अलग अलग टोलियों में
स्नान कर रहे थे. हम लोग भी नहाने की तैयारी कर चुके थे. एक नाव पर खड़े होकर विवेक
गंगा जी में उतरे. गंगा जी में उनके पैर रखते ही नीचे का कचरा (काई) उफनाकर ऊपर
आने लगा. उनके पैर में घुटने तक कचरा भर गया. फटाफट वह पैर को धुलकर नाव पर आये और
बगैर नहाये ही कपडा पहन लिये. माँ गंगा में इस तरह का कचरा देखकर मान दुखी हो गया.
फिर हम लोग नाव से गंगा जी के दुसरे तरफ गये और वहा नहाया गया. उस पर गंगा का
निर्मल जल जो होना चाहिये था वह नही था. फिर भी हम लोग वही स्नान करने के बाद बाबा
विश्वनाथ जी के दर्शन किये. मैंने जब जानकारी की तो पता चला कि कई संगठनों ने गंगा
सफाई के नाम अरबो रूपये सरकार से लिये लेकिन गंगा काशी में जब इतनी गन्दी है तो
बाकी जगह क्या हाल होगा. अस्सी ही नही बल्कि काशी के सभी घाटो का यही हाल है. किसी
घाट पर गंगा नहाने लायक नही रह गई है. जो लोग काशी में इस पार स्नान करते है उनके
मान में यह धारणा रहती है कि गंगा में डुबकी लगाने से पाप कटते है. इस वजह से ही
कचरे के बाद भी लोग उसमे डुबकी लगते है. मैंने संगम में इलाहाबाद के अलावा
हरिद्वार में गंगा जी में कई बार स्नान किया लेकिन कही भी गंगा जी में कचरा नही
मिला. फिर काशी में गंगा जी का यह हाल क्यूँ है? लगता है प्रशासन का ध्यान गंगा व्
घाटो की सफाई पर नही है. सरकार की तरफ से इसके लिये बजट तय है लेकिन कभी इस पर
ध्यान नही दिया जाता है. यह प्राणदायिनी माँ गंगा के लिये ठीक नही है. पिछले लोक
सभा चुनाव की कवरेज के लिये भी मेरा वाराणसी आना हुआ था. कांग्रेस और भाजपा के
अलावा सभी दलों के प्रत्याशियों ने बातचीत में गंगा की दुर्दशा का मुद्दा उठाया
था. मुझे ध्यान है मैंने स्टोरी की हेडिंग लगायी थी कि -जो गंगा की बात करेगा वही
काशी पर राज करेगा. पांच साल का समय गुजर गया लेकिन गंगा जैसी थी वैसी ही है. फिर
सांसदी का चुनाव आ गया और फिर लोग गंगा के नाम पर वोट मांगने का ताना बाना बन रहे
है. देखिये इस बार क्या होता है.
आप सोच रहे होंगे कि इस पत्रकार को ब्लाग लिखने की जरुरत क्यों आन पडी, जब इसके पास लिखने के लिए पहले से एक प्रमुख समाचार पत्र व टेलीविजन है। आपकी सोच ठीक है लेकिन मेरा मानना है कि अपनी ढेर सारी भावनाएं व विचार हम उस समाचार पत्र में नहीं लिख सकते। इसके लिए इण्टरनेट ब्लाग मुझे बेहतर माध्यम लगा। मेरे ब्लाग पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी साथ ही आपके सुझावों से इसमें बदलाव करने में यूपी के इस बन्दे को सहूलियत होगी।
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ना नहाओ ना धोओ गंगा को बस देखलो प्यार से क्योंकि कुछ दिन बाद यहाँ कभी गंगा बहती थी। सरस्वती नदी की तरह यह भी लुप्त हो जाएगी। गंगा की दशा सुनते सुनते सब थेथर हो चुके है।
जवाब देंहटाएंवाजपेयी जी गंगा कभी लुप्त तो नही होंगी लेकिन उनसे लोगो को जो प्यार मिलना चाहिये लोग उससे वंचित रह जायेंगे.
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