२०१४ के चुनाव के लिये
राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी गोटिया बिछानी शुरू कर दी है. राज्य स्तर पर पहचान
रखने वाली पार्टियों की बात तो अलग है लेकिन दो सबसे बड़ी पार्टियों कांग्रेस और
भाजपा अपनी रैलियों में पानी की तरह पैसा बह रहा है. नरेंद्र मोदी की तो एक-एक
रैली में २५ करोड़ से ज्यादा रूपये खर्च हो रहे है. कोई पार्टी यह बताने को तैयार
नही है कि रैलियों में जो रकम खर्च हो रहे है वह काला है या सफ़ेद? कई चैनलों पर भी
नेताओ से यह सवाल पूछे गये कि राजनीतिक दल इस बारे में अपनी स्थिति सपष्ट करे लेकिन
बहस में बैठने वाले नेता इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते है. कांग्रेस भी राहुल की
रैलियों पर खूब खर्च कर रही है लेकिन इस मामले में वह भाजपा से कमतर पड़ रही है.
भाजपा तो मोदी की रैलियों को हाई टेक तरीके से पेश कर रही है जाहिर है कि इस कार्य
में पैसे भी खूब खर्च हो रहे है. अहमदाबाद से लगायी गई मोदी की चौपाल पर बताते है
कि २० करोड़ रूपये खर्च किये गये. क्या कोई बता सकता है कि इतनी बड़ी रकम सफ़ेद हो
सकती है. जाहिर है कि चुनाव प्रचार में जो भी करोडो रूपये खर्च हो रहे है वह काला
धन ही है. ऐसे में सवाल उठता है कि जो पार्टिया चुनाव में काला धन खर्च कर रही है
वह क्या सत्ता में आने के बाद काला धन को देश से ख़त्म करने के लिये आगे आ सकती है.
मेरा जवाब तो नही में ही होगा और शायद आप सब का भी यही जवाब होगा. इन पार्टियों को
जिस भी कारोबारी घराने से ये पैसे मिल रहे है सरकार बनने के बाद उनके फेवर में सरकार
को काम करना तो मज़बूरी होगी. इस मामले में आप पार्टी की तारीफ करनी होगी कि दिल्ली
विधान सभा चुनाव लड़ने के लिये केजरीवाल ने इन्टरनेट के जरिये चंदा माँगा और कितना
चंदा मिला यह पूरे देश को बताया. कांग्रेस और भाजपा ने अभी तक चंदे के बारे में
देश को कुछ नही बताया है. ऐसे में इनसे एक ईमानदार सरकार की उम्मीद करना बेमानी
है. देश में ईमानदार सरकार के लिये सबसे पहले चुनाव सुधार करना जरुरी है. एक लोक
सभा में प्रत्याशी अगर ५ करोड़ से कम खर्च करता है तो उसे कमजोर प्रत्याशी कहा जाता
है. अभी चुनाव घोषित होने में २० दिन बचे है लेकिन कई दलों के प्रत्यशियो (सपा और
बसपा) ने अब तक करोडो खर्च कर दिए है. जो लोक सभा चुनाव में करोडो अपनी जेब से
खर्च करेगा उससे संसद में जाकर ईमानदारी की उम्मीद करना बेमानी ही होगा. वह तो
सीधे तौर पर पहले अपने खर्च को निकालने की जुगत में जुटेगा फिर अगले चुनाव में होने
वाले खर्च को जुटायेगा. इसके बाद फायदे भी जुटायेगा. आपको क्या लगता है यह सब कुछ
नंबर एक में होगा? नही. यही तो ब्लैक मनी होगी. ये लोग संसद में जाकर काला धन को
ख़त्म करने की क्या पहल करेंगे? देश में ईमानदार राजनीति की शुरुआत चुनाव खर्च को
नियन्त्रित करने से ही होगी. इसके लिये सबसे पहले चुनाव आयोग को काला धन को खर्च
करने पर रोक लगानी होगी.
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