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बुधवार, 20 जून 2012

करोड़ों के तालाब खुदे, पानी का अता पता नहीं


केंद्र सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ‘मनरेगा’ जैसी महत्वाकांक्षी योजना को दूसरे चरण में शहरों में भी लागू करने के लिए बेताब दिख रही है, लेकिन इसके पहले चरण में जिस तरीके से काम हो रहा है उससे गांवों की दशा में बड़े बदलाव की उम्मीद बेमानी ही लगती है। करोड़ों रुपये के खर्च से सैकड़ों पोखरे एवं तालाब खुदे लेकिन उसमें पानी भरने के लिए महीनों से बरसात का इंतजार हो रहा था। कारण कि पानी भरने का बजट मनरेगा में है ही नहीं। सड़कें बनीं, पर गरीबों के रास्ते अब भी कच्चे हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू के कई जिलों में मनरेगा के कामों की पड़ताल में यही हकीकत सामने आई है। मजदूरों की अहमियत जरूर बढ़ी है, अब दूसरी जगह भी उन्हें डेढ़ सौ रुपये तक मजदूरी मिल जाती है। हालांकि सालभर काम न मिलने से उनकी जीवनशैली में भी खास बदलाव नहीं आया।


गोरखपुर से १५ किमी दूर है भौवापार गांव। यहां चिलोधर, हरिजन बस्ती, उत्तर टोला और शिव मंदिर के पास के पोखरों पर मनरेगा के लाखों रुपये खर्च हुए पर पानी नहीं भरा गया। शिव मंदिर के पास के प्राचीन पोखरे के लिए पूर्व सांसद राज नारायण पासी ने भी १०.६ लाख रुपये दिए थे। अब मनरेगा के ३.६२ लाख रुपये भी इस पर खर्च हुए, पर पानी के लिए महीनों से मानसून का इंतजार हो रहा था। ग्राम प्रधान का कहना है कि तालाबों में पानी भरने को प्रावधान मनरेगा में है ही नहीं।


वाराणसी जिले में ५७६ आदर्श तालाब खुदे। मुख्य विकास अधिकारी शरद कुमार सिंह नहर किनारे के २७ तथा नलकूप के पास के १६४ तालाबों में पानी होने का दावा करते हैं, पर गांव वाले कुछ और ही कहते हैं। गांव बसनी की प्रधान रेखा पटेल का कहना है कि तालाब में पानी भरने का बजट ही नहीं है। मुख्य विकास अधिकारी भी बताते हैं कि तालाब भरने के लिए मनरेगा में बजट नहीं है। तालाबों की खुदाई के बाद सिंचाई और नलकूप विभाग को सूचना दे दी जाती है। जहां नहर या नलकूप की सुविधा नहीं है उन तालाबों को प्राकृतिक तरीकों से ही भरा जाता है। उधर, नलकूप विभाग के एक्सईएन एके सिंह ने बताया कि तालाबों को भरने के लिए बजट नहीं मिल रहा है। जिन तालाबों के निकट नलकूप हैं उनमें विभाग पानी भरवा रहा है।


झांसी जिले के मोठ ब्लाक में पांच तालाब दो साल बाद भी सूखे हैं। किसानों का कहना है कि जिस उम्मीद से उन्होंने तालाब के लिए जमीन दी, उसी पर पानी फिर गया। मछली पालन का सपना तो सपना ही रह गया। गांव के कुछ किसान जरूर खुशनसीब हैं, जिनके खेतों में कुएं का निर्माण हुआ था। मनरेगा के तहत मजदूरों को काम देने की अनिवार्यता के चलते जिले के ज्यादातर इलाकों में सड़कों पर लेप करवाकर खानापूरी की जा रही है।

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