आखिर देश के लोगो की भावनाओ
के साथ ये राजनीतिक दल कब तक खिलवाड़ करके वोट लेकर शासन करते रहेंगे? देश के लोगो
को राजनीतिक दलों की इस तरह की मंशा क्यूँ समझ में नही आ रही है? मुजफरनगर में
हुये दंगे की आग अभी शांत भी नही हुई थी कि अब ८४ के दंगो का जिन्न बाहर आ गया. इस
जिन्न को किसी सिख समुदाय के लोगो ने नही निकाला बल्कि राहुल गाँधी और अरविन्द
केजरीवाल ने. राहुल ने यह कहकर सिखों की दुखती रग को छुआ कि इन दंगो में कुछ
कांग्रेसी नेताओ के भी हाथ थे. राहुल को लगा कि उनके इस तरह के जवाब से सिख समुदाय
की सिम्पैथी कांग्रेस के साथ होगी लेकिन हुआ इसके ठीक उलट, समुदाय के लोग भड़क गये
और उस कांग्रेसी का नाम पूछने लगे जिसकी तरफ राहुल ने इशारा किया था. अब राहुल और
कांग्रेस के लिए यह नई मुश्किल खड़ी हो गई जिसने दस साल तक इक सिख को प्रधानमंत्री
बनाये रखा. देश में सिखों की आबादी करीब १.९ फीसद है. पंजाब के अलावा दिल्ली की कई
सीटो पर वह निर्णायक की भूमिका में होते है. इसी बीच आम आदमी पार्टी के सी एम्
अरविन्द केजरीवाल ने सिख दंगो के लिये नए सिरे से एस आई टी बनाकर जाँच करने की
मांग लेफ्टिनेंट गवर्नर से कर दी. केजरीवाल की नजर सिख समुदाय के देश भर के वोटो
पर है जिसे वह इस तीर के जरिये २०१४ के चुनाव में हासिल करना चाहते है. सिखों का
कहना है कि उन्हें दिल्ली में हुये कत्लेआम में इंसाफ नही मिला. जबकि इस दंगे की
जाँच के लिए ६ से ज्यादा कमीशन बन चुके है. कोर्ट में अभी यह मामला चल रहा है
लेकिन सजा किसी को नही हुई. मेरा सवाल है कि क्या सज्जन कुमार को सजा हो जाय तो मान
लिया जायेगा कि इंसाफ मिल गया? मेरा साफ मानना है कि दोषी कोई भी हो कितना भी
ताकतवर हो लेकिन उसे दंड मिलना चाहिये लेकिन अपने देश की नयायपालिका की कच्छप
रफ़्तार के बारे में तो सभी जानते है. न्याय मांगने वाला स्वर्ग सिधार जाता है
लेकिन न्याय नही मिलता. जैसे सब मामलो में होता है वैसा ही इस प्रकरण में भी हो
रहा है लेकिन क्या फिर से इक जाँच से सिखों को इंसाफ मिल सकेगा? कोई कानून का जानकार
बोलेगा नही. एस आई टी तो जाँच एजेंसी होगी फिर सजा के लिए उसे कोर्ट ही जाना होगा.
कोर्ट की रफ़्तार का सबको पता है. यहा कानूनी द्रष्टि से अगर देखा जाय तो एस आई टी
को ३० साल बाद उस घटना में क्या सबूत मिलेगा? घटनास्थल का भी सही तरीके से आकलन
नही कर पाएगी जाँच एजेंसी. मै यह जानता हूँ कि केजरीवाल को सिखों से कोई हमदर्दी
नही है बल्कि उन्हें सिखों की भावनाओ को कुरेदकर महज २०१४ में वोट लेना है. अगर
हमदर्दी थी तो उन्होंने इसके लिए पहले कभी आन्दोलन क्यों नही किया? केजरीवाल जानते
है कि इस जाँच का आदेश वह नही दे सकते है इस वजह से मुद्दा उठाकर टी वी चैनलों पर
इक नई तरह की बहस जरुर शुरू करा दी है. मेरी जानकारी में आया है कि केजरीवाल ने
चुनाव के दौरान बाटला हाउस कांड की भी नए सिरे से जाँच कराने को कहा था. उनके इस
तरह के कृत्य से समझा जा सकता है कि केजरीवाल वोट के लिये आतंकियों की भी पैरवी कर
सकते है. केजरीवाल से देश के लोगो को कुछ उम्मीदे थी लेकिन वह सत्ता पाने की और भी
जल्दी में है. ऐसे में लगता है कि वह कांग्रेस और भाजपा से भी खतरनाक है.
आप सोच रहे होंगे कि इस पत्रकार को ब्लाग लिखने की जरुरत क्यों आन पडी, जब इसके पास लिखने के लिए पहले से एक प्रमुख समाचार पत्र व टेलीविजन है। आपकी सोच ठीक है लेकिन मेरा मानना है कि अपनी ढेर सारी भावनाएं व विचार हम उस समाचार पत्र में नहीं लिख सकते। इसके लिए इण्टरनेट ब्लाग मुझे बेहतर माध्यम लगा। मेरे ब्लाग पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी साथ ही आपके सुझावों से इसमें बदलाव करने में यूपी के इस बन्दे को सहूलियत होगी।
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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014
रविवार, 19 जनवरी 2014
आखिर शक की बुनियाद पर कब जान देती रहेंगी महिलाये
शशि थरूर की
तीसरी पत्नी सुनंदा
पुष्कर की संदिग्ध
हालत में मौत
हो गई. यह
कोई पहला मामला
नही है जिसमे
पति पत्नी और
वो (दोस्त) के
बीच किसी महिला
ने जान दी
है. अब
तक इस तरह
के लाखो मामले
प्रकाश में आ
चुके है. सोशल
संगठन चलने वाले
कई शोध कर
चुके है लेकिन
इस तरह के
मामलो का कोई
हल नही निकल
रहा है. समाज
का हर वर्ग
यह पीड़ा झेल
रहा रही है.
शक की बुनियाद
पर ही यह
मौते होती है.
यहा मेरा एक
सवाल है कि
क्या कोई महिला
और पुरुष महज
दोस्त नही हो
सकते है? अगर
उनमे दोस्ती होती
है उसका सेक्स
तक जाना जरुरी
है? मुझे लगता
है कि इस
तरह की सोच
सही नही है.
जिस तरह से
दो पुरुषो के
बीच गहरी दोस्ती
होती है उसी
तरह से किसी
महिला और पुरुष
के बीच भी
सिर्फ गहरी दोस्ती
हो सकती है
और उसकी मिसाले
भी दी जा
सकती है. कृष्ण
और राधा की
दोस्ती और प्रेम
की आज भी
मिसाले दी जाती
है और आगे
भी दी जाती
रहेगी। क्या राधा
और कृष्ण के
प्रेम या दोस्ती
की वजह से
कृष्ण और उनकी
धर्म पत्नी रुक्मणि
के बीच कभी
कोई विवाद उत्पन्न
हुआ? जवाब मिलेगा
नही फिर आज
शक की वजह
से लोग अपनी
जान क्यूँ दे
रहे है? हमारी
देश की नारी
शक्ति को यह
समझना होगा कि
अगर उनके पति
का किसी और
महिला से गलत
सम्बन्ध भी है
तो भी अपनी
जान देने की
बजाय उस स्थिति
से डटकर मुकाबला
करना चाहिए। सुनंदा
पुष्कर की यह
तीसरी शादी थी.
उनकी दो शादिया
भी शायद गलत
संबंधो कि वजह
से टूटी होगी।
चाहे यह सम्बन्ध
पहले सुनंदा ने
कायम किये हो
या फिर उनके
उस पति ने.
सुनंदा को तो
इसका अच्छा अनुभव
था फिर वह
डिप्रेसन में किस
वजह से चली
गई समझ में
नही आ रहा
है. सुनंदा पुष्कर
को इस मामले
डटकर मुकाबला करना
चाहिए था. अगर
उन्हें पता चल
गया था कि
उनके पति शशि
थरूर की पाकिस्तानी
पत्रकार मेहर से
दोस्ती है तो
सुनंदा को पहले
यह देखना चाहिए
था कि इस
दोस्ती से kya शशि थरूर
का उनके प्रति
प्यार कुछ कम
हो रहा था?
मुझे लगता है
कि जिस तरह
से थरूर सुनंदा
की मौत को
लेकर दुखी नजर
आये उससे तो
नही लगता कि
उनके सुनंदा के
साथ प्रेम में
कोई कमी आयी
रही होगी। महिलाओ
में अपने पति
और प्रेमी के
किसी गैर महिला
के साथ दोस्ती
को लेकर जो
शक पैदा होता
है वह निहायत
ही खतरनाक है.
हर घर में
शायद इस तरह
का शक हर
दम्पति के जीवन
में इक दो
बार जरुर आता
है. कई घर
इसी शक के
बिना पर टूट
जाते है लेकिन
कई के घर
नही टूटते है.
मेरी सोच
है कि भारत
में भी जापान
का कल्चर लागू
होना चाहिए। जिस तरह
जापान में हर महिला को छूट है की वह अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष को प्रेमी या
दोस्त बना सकती है उसी तरह यहा भी होना चाहिए। जापान की महिलाये अपने पति की खूब सेवा
करती है. शायद भारत की महिलाये भी अपने पति
की इतनी सेवा न करती हो. मेरे एक पत्रकार साथी
ने अपने जापान के दौरे का यात्रा वृतांत सुनते हुये जानकारी दी थी कि जापान
की पत्निया अपने पति की भारत की पत्नियों से ज्यादा सेवा करती है. बल्कि वह मित्र तो
जापान की महिलाओ से इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने अपने बेटे को जापानी बहू लाने को
कहे.
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