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रविवार, 7 नवंबर 2010

वाह रे ओबामा


अमरीका को दुनिया का सबसे ताकतवर देश कहा जाता है़ किसी भी देश की हिम्मत नहीं है कि उसके सामने सिर उठा सके़ चार साल पहले अमरीका के राष्ट्रपति जार्ज बुश भी भारत के दौरे पर आये थे और आज बराक ओबामा़ दोनों ही दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति हैं लेकिन तब और अब में काफी फर्क आ गया है़ तब जार्ज बुश के सामने हमारे कोई खास हैसियत नहीं थी लेकिन इस बार ओबामा ने भारत को अपना दोस्त कहा़ भारत को अमरीका के बराबर का दर्जा दिया़ इसका मतलब यह कत्तई नहीं लगाया जाना चाहिए कि अमरीका ने भारत के सामने घुटने टेक दिये अपने देश के बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के लिए़ जैसा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के हमारे साथी शोर मचा रहे हैं. हमें इस बात को समझना चाहिए कि अमरीका की ताकत हमसे कई गुना ज्यादा है़. जिस जहाज में अमरीका का राष्ट्रपति यात्रा करता है उस तरह का जहाज भारत को हासिल करने में अभी कितना वक्त लगेगा नहीं कहा जा सकता है़ हम भारतीयों को ओबामा के इस कदम की तारीफ करते हुए उनके साथ कदमताल करना चाहिए़ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस बात को समझ गये हैं लेकिन लगता है देश के मीडिया के बंधु इसे नहीं समझना चाहते हैं़ यही वजह है कि मनमोहन सिंह खुद ओबामा के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पर अपनी पत्नी के साथ गये़ यह इस देश के लिए एक बड्ी घटना है़ ओबामा की यात्रा को लेकर पूरी मीडिया सिर्फ  पाकिस्तान को केन्द्र में देख रही है़ मेरा सवाल है कि क्या ओबामा सिर्फ  पाकिस्तान पर बात करने के लिए भारत की यात्रा पर आये हैं? अमरीका के साथ औद्योगिक समझौता होना क्या कम है़ मुम्बई के सेंट जेवियर्स कालेज के छात्रों के सवाल के जवाब में ओबामा ने बहुत अच्छी बात कही पाकिस्तान की तरक्की और खुशहाली में भारत का भी भला है़ ओबामा ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में कुछ लोग हैं जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं. पाकिस्तान सरकार उन पर अंकुश नहीं लगा पा रही है शायद यही वजह है कि पाकिस्तान भी आतंकवाद का उतना ही शिकार है जितना भारत व अन्य देश़ भले ही अमरीका पाकिस्तान को आर्थिक मदद करता हो लेकिन वह खुद भी चाहता है कि आतंकवादियों का पाकिस्तान से खात्मा होक़्योंकि अमरीका भी आतंकवाद का कम दंश नहीं झेल रहा है़ 9/11 की घटना को शायद ही अमरीका भुला पा रहा हो़ हमें यह समझना होगा कि कई बार हमारी जो भी प्राथमिकता होती है वह हमारे किसी दोस्त की नहीं होती है़ ओबामा का भारत से कुछ ज्यादा ही लगाव नजर आ रहा है, मुझे नहीं लगता है कि इतना लगाव ओबामा का पाकिस्तान के साथ होगा़ कुछ राजनीतिक मजबूरियां भी हो सकती हैं पाकिस्तान के आर्थिक सहयोग में़हम इस बात को क्यों नहीं समझते हैं कि पाकिस्तान हमारी समस्या है़ हमें ही इस समस्या से खुद ही निपटना होगा़ वैसे भी हम क्या कम ताकतवर हैं जो पाकिस्तान से टक्कर लेने के लिए अमरीका का सहयोग लेंगे़ भारत की नीति हमेशा से पाकिस्तान का विवाद बातचीत के जरिए सुलझाने की रही है़ यह एक अच्छी बात है़ ओबामा जिनको अपने जीवन का आदर्श मानते हैं गांधी उनके भी कुछ ऐसे ही विचार थे़ गांधी जी आहंसा के पुजारी थे़ गांधी जी ने अंग्रेजों को भगाने में भी हमेशा से आहंसा का सहारा लिया़ जहां कहीं भी हिंसा हुई गांधी जी ने हमेशा उसको कण्डम किया थाग़ांधी जी के ही शिष्य हैं ओबामा़ फिर वे अगर बातचीत की पेशकश कर रहे हैं तो व्ात्या बुराई है़ मैने तो गांधी को नहीं देखा और न मिला लेकिन जितना उनके बारे में जाना और समझा है वास्तव में गांधी जैसे लोगों को भी भगवान कहा जाता है़ मुझे लगता है कि ओबामा की यह भारत यात्रा पाकिस्तान मुद्दे के अलावा पूरी दुनिया में यह संदेश देने में सफल होगी कि भारत भी अब ताकतवर हो गया है़ भारत अब पिछलग्गू देश नहीं रहा़ अमरीका जैसे विश्व का सबसे ताकतवर देश अब उसे अपना दोस्त जो बता रहा है़.

शुक्रवार, 7 मई 2010

फांसी को लेकर राजनीति बन्द करो

17 महीने के कम समय में अजमल आमिर कसाव को फांसी की सजा तो सुना दी गयी लेकिन उसे फांसी होने में 17 साल लग जायं तो इसमे किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कसाव की फांसी पर पूरे देश ने खुशी तो जाहिर की लेकिन मुझे लगता है कि असली खुशी तभी मिलेगी जब उसे फांसी पर लटका दिया जाय। फांसी पर लटकाये जाने का पुराना जो रिकार्ड रहा है उससे लगता नहीं कि कसाव को जल्द फांसी मिल पाएगी। संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को भी फांसी सुनायी जा चुकी है लेकिन चार साल से ज्यादा का समय गुजर गया उस पर निर्णय नहीं हो पााया। न्यायपालिका ने तो अपना काम पूरा कर दिया लेकिन अब सरकार अपना काम नहीं कर पा रही है। ऐसे में यह कैसे माना जाय कि सरकार वास्तव में आतंकवाद को रोक पायेगी। वैसे तो हमारे देश में फांसी पर अंतिम निर्णय होने में लम्बा वक्त लगता है लेकिन यदि मामला किसी खास कम्युनिटी का होता है फिर तो वोट बैंक भी प्रभावित होने लगता है। वर्ष 2004 में धनन्जय चटर्जी के बाद भारत में किसी को फांसी नहीं दी गयी। 308 लोगों को मौत की सजा सुनायी जा चुकी है। 29 लोगों की मर्सी अपील राष्ट्रपति के यहां पडी है। राष्ट्रपति को सब काम की फुर्सत तो है लेकिन जिससे अपराधियों पर कानून का भय पैदा करना है उस पर निर्णय लेने की फुर्सत लगता है उन्हें नहीं है। जब किसी को फांसी पर नहीं लटकाना है फिर फांसी की सजा सुनाने की कोर्ट को जरुरत क्या है? आतंकवादी अफजल गुरु को  फांसी पर लटकाने को लेकर राजनीतिक दलों में जबरदस्त रस्साकसी चल रही है। कसाव के मामले में इनका रवैया थोडा अलग नजर आ रहा है। देश के मुसलमानों का नजरिया भी थोडा बदला है। मुझे लगता है कि कसाव यदि हिन्दुस्तानी होता तो देश के मुसलमानों का नजरिया अफजल गुरु जैसा ही होता। यहां देश के मुसलमानों को ध्यान रखना होगा कि आतंकवादी की कोई जाति व धर्म नहीं होता है। यह अलग बात है कि जेहाद के नाम पर चन्द मुसलमान पूरी दुनिया में आतंकवाद को फिला रहे हैं। पाकिस्तान उनकी अगुवाई कर रहा है लेकिन भारत के मुसलमानों को यह ध्यान रखना चाहिए कि देश में जब भी आतंकवादी हमला होता है उस समय हिन्दु व मुसलमान दोनों की जान जाती है। आतंकवादी हिन्दुओं को भी टार्गेट करके हमला नहीं करते हैं। आतंकवादी अफजल गुरु हो या कसाव दोनों को फांसी जल्दी दी जाय इसके लिए देश के मुसलमानों को आगे आना चाहिए। माहौल खडा करके सरकार पर मर्सी अपील पर जल्द निर्णय का दबाव बनाना चाहिए। यही कदम देश हित में है और देशवासियों के भी। मेरा मानना है कि सरकार को भी फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति को भी समझ करके जल्द निर्णय लेना चाहिए। जिस किसी व्यक्ति को फांसी की सजा सुना दी जाती है वह हर रोज तिल-तिल कर मरने का एहसास करता है। उसे भी समझ में नहीं आता कि कल क्या होने वाला है। मानसिक हालत खराब होने पर वह गम्भीर बीमार भी पड सकता है। ऐसी स्थिति में जेल के सामने एक नई तरह की समस्या खडी हो सकती है। दूसरी तरफ कसाव व अफजल जैसे आतंकवादियों को फांसी की सजा सुनाये जाने के बाद उनकी सुरक्षा पर करोडों का खर्च भी सरकार कर रही है। यह खर्च तो अनायास ही लगता है। यह खर्च कब तक होगा किसी को नहीं पता। मुझे लगता है कि फांसी पर राजनीति बन्द हो जाय तो अपराधियों में फांसी का खौफ जरुर पैदा होगा जो न्याय की मंशा भी है।

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

मीडिया का पागलपन

इसे मीडिया का पागलपन नहीं तो और क्या कहेंगे। जब कोई पुरुष तरक्की की ऊंचाईयां छूता है तो तब उसकी तारीफ के पुल बांधने लगता है लेकिन जैसे ही महिला तमाम बाधाओं को दूर करके ऊंचाईयां छूती है तो सब उसके पीछे ही पड जाते हैं। मीडिया खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया उसकी निजी जीवन में जबरदस्ती की ताक झांक करने लगता है। सबसे पहले उसके चरित्र पर सवाल खडे किये जाने लगते हैं। आईपीएल विवाद में विदेश राज्य मंत्री शशि थुरुर को अपनी वुᆬर्सी गंवानी पडी। उन्होंने तो वुᆬर्सी छोड दी लेकिन उनकी दोस्त सुन्नदा पुष्कर को रोज एक न एक आरोपों से दो चार होना पड रहा है जैसे उनकी शशि थुरुर से जान पहचान होना कोई अपराध है। मीडिया ने उनके चरित्र पर भी सवाल उठाये। परेशान सुन्नदा को यहां तक कहना पडा कि मीडिया ने उनकी बेहद फूहड़  छवि पेश की। आखिर मीडिया को हो क्या गया है। क्या कोई महिला ऊंचाई नहीं छू सकती है? पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के बाद श्रीमती सोनिया गांधी, तमिलनाडू की मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता व यूपी की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती भी तो महिला ही हैं जिन्होंने सफलता के मुकाम अपनी शर्तों पर तय किये हैं। इस पुरुष प्रधान समाज में इन महिलाओं ने देश की अन्य महिलाओं के लिए रास्ता दिखाने का काम किया है। इनके निजी जीवन में झांकने की कभी मीडिया ने कोशिश नहीं की। वजय ये इतनी ताकतवर हैं कि मीडिया के बडे-बडे दिग्गज भी इनके सामने सिर झुकाते हैं। मीडिया के लोग जानते हैं कि बगैर तथ्य के इनके बारे में वुᆬछ भी टिप्पणी की तो उसकी सजा भी उन्हें भुगतनी पड सकती है। शायद यही वजह है कि इनके जीवन में झांकने की कोशिश नहीं कर पाते हैं। वैसे भी हमारे पुरुष प्रधान समाज में किसी भी महिला पर उसके चरित्र को लेकर टिप्पणी करना आजकल का शगल हो गया है। मीडिया भी अब उसमें शामिल हो गया है। मैं भी मीडिया से ही हूं लेकिन मुझे लगता है कि मीडिया को किसी के भी निजी जिन्दगी में झांकने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए और महिलाओं को भी इस तरह की आलोचना से विचलित नहीं होना चाहिए। उन्हें उसी रपत्तार से अपनी तरक्की की रपत्तार को आगे बढाना चाहिए जैसे वह चल रही हैं। अभी हाल में एक कार्यक्रम  में मिस वर्ल्ड डायना हेडेन जी से मुलाकात हुई। डायना हेडेन जी ने बताया कि जब वह 14 साल की थीं तभी उनके पेरेन्ट्स अलग हो गये। डायना के सामने आगे का रास्ता तय करने का मुश्किल भरा सफर था। डायना ने पहले एक कम्पनी में रिसेप्सनस्ट की नौकरी की लेकिन उनकी इच्छा मिस इंडिया का ताज हासिल करने की थी। वह अपने लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आगे बढती रही और मिस वर्ल्ड बनीं। हैदराबाद में उन्हें छुटभैये लोफरों से दिक्कतें भी हुईं लेकिन वह अपने लक्ष्य से डिगी नहीं। महिलाओं के बारे में कोई भी टिप्पणी करना किसी भी पुरुष के लिए बेहद आसान होता है लेकिन मेरा मानना है कि यदि कोई महिला चरित्रहीन होती है तो उसमें पुरुष का बडा योगदान होता है। काल गर्ल के बारे में आधकांश पुरुष चर्चा करते हैं लेकिन यदि पुरुष नहीं होते तो कोई लडकी काल गर्ल क्यों बनती। कई लडकियों को काल गर्ल बनाने में पुरुष का ही योगदान होता है। और जहां तक इलेक्ट्रानिक मीडिया की बात है वहां तो फिल्मों से ज्यादा कास्टिंग काऊच है। लडकियों को नौकरी देने से लगायत उन्हें प्रोन्नति देने में बडे-बडे सम्पादक उनका शोषण करते हैं। दिल्ली में चैन्ालों के दपत्तर में रोज इस तरह की घटनाएं होती हैं। वास्तविकता यह है कि लडकियां तो मजबूर होकर सम्पादकों के समक्ष अपने को पेश करती हैं। अब सम्पादक इसे अपने तरीके से भी कह सकता है कि फलां लडकी ने नौकरी या प्रमोशन के लिए कम्प्रोमाइज करने से गुरेज नहीं किया। दिल्ली की एक इलेक्ट्रानिक मीडिया के दपत्तर का हाल आपको बताता हूं। इनपुट हेड ने एक महिला रिपोर्टर को महज इसलिए पहले तो रिपोटिर्ग से हटवाया जब वह उनकी तरफ आकर्षित नहीं हुई तो रात की पाली में उनकी ड्यूटी लगा दी। वह पत्रकार मेरे एक जानने वाले की रिश्तेदार थी। मैने अपने जानने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार से हस्तक्षेप करवाया तब जाकर वह जनाब उस महिला का पीछा छोडे। मुझे लगता है कि किसी भी महिला के निजी जीवन में झांकने से पहले मीडिया के साथियों को अपने गिरेबान में एक बार जरुर झांकना चाहिए।

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

हरि के द्वार पर दुनिया का मेला

हरिद्वार यानी हरि का द्वार। विश्व की इस अध्यात्मिक नगरी में १४ अप्रैल को दुनिया का सबसे बडा मेला समाप्त हो गया। वैसे तो तीन माह तक चले इस मेले में देश विदेश के पांच करोड से ज्यादा लोगों ने पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाकर अपनी मनोकामना पूरी होने की मिन्नतें की। अंतिम दिन भी ५० लाख से ज्यादा लोग गंगा में स्नान किये। यह ऐतिहासिक छण अब १२ वर्ष बाद आएगा। वैसे तो अर्द्वकुम्भ हर तीन साल पर आता है लेकिन १२ साल पर पूर्णकुम्भ  लगता है। कुम्भ  में शाही स्नान के मौके पर अखाडों के जुलूस पर पूरी दुनिया की नजर रहती है। इस कुम्भ  में तीन लाख से ज्यादा साधु सन्तों ने भी गंगा में डुबकी लगायी। लाखों साधु सन्त तो तीन महीने तक कुम्भनगरी में रुककर तपस्या करते रहे। आलीशान मठों में रहने वाले साधु सन्त तिरपाल के पाण्डाल में वुᆬछ ज्यादा ही प्रसन्न हैं। दिन भर उनके पास भक्तों का आर्शीवाद लेने का तांता लगा रहता है। दोनों वक्त किसी न किसी भण्डारे में शिरकत। शाम को भजन व प्रवचन। इस कुम्भ  में गंगा में डुबकी लगाने का सौभाग्य मुझे भी मिला। कुम्भ  में हर तरफ अलग ही नजारा नजर आ रहा था। अमीर-गरीब सब तिरपाल के पाण्डाल में दरी पर सो रहे हैं। करोडों के कारोबारी कुम्भ में पुण्य कमाने के लिए महीनों से साधु सन्तों की शरण में डेरा डाले हुए हैं। गुजरात से आये एक व्यापारी कहते हैं कि जीवन का जो सुख उन्हें गंगा के किनारे सन्तों के बीच मिल रहा है उन्हें अपनी कोठी में कभी नहीं मिला। उनका पूरा परिवार कुम्भ में स्नान जरुर करता है। मनीष की तरह हजारों करोडपति व्यापारी कुम्भ  में साधु सन्तों की सेवा में लगे हुए हैं। साधु भी अपनी आवभगत से बेहद प्रसन्न हैं। अयोध्या के साधू धरणीधर जी से मेरी मुलाकात वैरागी पाण्डाल में हुई। बकौल धरणीधर जी अयोया से ज्यादा व्यस्तता कुम्भ  में है। रोज किसी ने किसी भण्डारे में जाना पडता है। कई बार एक ही समय पर कई लोग भण्डारा कराना चाहते हैं यह कैसे सम्भव है। कुम्भ  में आने पर लगता है कि देश में कितने धार्मिक लोग हैं। बिन बुलाये करोडों लोग यहां पहुंच रहे हैं। वैरागी आश्रम के एक पाण्डाल में वुᆬछ अलग ही नजारा नजर आया। अंग्रेज भक्त अयोध्या के वुᆬछ साधुओं का पांव धुलकर तौलिया से पोंछ रहे थे। भण्डारा कराया फिर उन्हें दक्षिणा दी। सौ वर्ग किलोमीटर से ज्यादा में बसे कुम्भ नगर में हर तरफ अलग ही नजारा नजर आया। हरि की पैडी का तो महत्व ही अलग है। भारी भीड के बावजूद मुझे हरि की पैडी पर दो दिन स्नान करने का सौभाग्य मिला। हरि की पैडी पर ही एक होटल में मैं ठहरा था। गंगा जी की निर्मल दारा में डुबकी लगाने का आनन्द ही वुᆬछ और है। सुबह के समय तो गंगा जी इतनी शीतलता लिये हुए थी कि पांच मिनट तक पानी में रहना सम्भव नहीं हो पा रहा था। हरि की पैडी पर वैसे तो २४ घंटे स्नान चलता रहता है लेकिन भोर के तीन बजे से रात १२ बजे तक भारी भीड रहती है। शाम को पांच बजते ही आरती दर्शन के लिए लोग स्थान सुरक्षित करने में लग जाते हैं। जरा सी देर हुई तो आरती में जगह नहीं मिलती। वैसे तो आरती ६़४२ बजे प्रारम्भ होती है लेकिन ऐतिहासिक गंगा आरती के लिए घंटों तक लोग इन्तजार करते हैं। विदेशी सैलानियों में भी आरती को लेकर गजब का उत्साह नजर आया। आरती के समय हरि की पैडी पर स्नान रोक दिया जाता है। आरती के बाद भीड छंटते ही फिर गंगा में डुबकी का सिलसिला शुरु हो जाता है। वुᆬम्भ में आने वाले हर व्यक्ति पर नजर रखने के लिए कैमरे तो लगे ही थे २० हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी भी तैनात रहे। पहली बार १३० प्रशिक्षु आईपीएस आधकारियों को वुᆬम्भ की व्यवस्था देखने के लिए खास तौर पर हरिद्वार भेजा गया। वैसे तो यहां ३ से ४ लाख लोग साल में ३६५ दिन हरिद्वार में गंगा में डुबकी लगाते हैं लेकिन ५३५ साल बाद लगे इस अदभुद संयोग वाले कुम्भ में भीड के रोज नये रिकार्ड बनते नजर आये। आखिरी तीन दिनों में सवा करोड लोगों के स्नान का अनुमान है। १४ जनवरी २०१० को कुम्भ  का पहला स्नान था। अब तक पांच करोड से ज्यादा लोग गंगा में डुबकी लगा चुके हैं। कुम्भ  को हिन्दुओं का दुनिया का सबसे बडा आयोजन माना जाता है। इतनी बडी संख्या में लोग मक्का में हज के दौरान ही जमा होते हैं। हरिद्वार में इतनी भीड के बावजूद कहीं भी अव्यवस्था नजर नहीं आयी। यह अलग बात रही कि भीड बढने पर वाहनों का आवागमन रोक देने से यात्रियों को दूर तक पैदल जरुर चलना पडा। जय गंगे माता।

बुधवार, 24 मार्च 2010

सुप्रीम कोर्ट ने की गलत व्याख्या-राधा कृष्ण तो नहीं थे लिव इन रिलेशनशिप में

सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को वैध ठहराकर युवाओं को खुश तो कर दिया लेकिन जिस तरह से यह पैᆬसला आया इसने एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पैᆬसले के पीछे राधा व कृष्ण के सम्बन्धों का जिव्रᆬ किया है। अखबारों में छपी रिपोर्ट पर गौर किया जाय तो सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि पौराणिक कथाओं के मुताबिक कृष्ण और राधा भी साथ-साथ रहते थे। मुझे लगता है कि विद्वान न्यायाधीशों की पीठ ने इस बिन्दु पर पौराणिक कथाओं का सही तरह से अवलोकन नहीं किया। रामनवमी से ठीक एक दिन पूर्व 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट का यह महत्वपूर्ण पैᆬसला आया। 24 मार्च को यह पैᆬसला देश के सभी महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में छपा। टीवी चैनलों ने भी इस खबर को अपने प्राइम टाइम में चलाया। पूरे दिन पत्रकारों व बुद्विजीवियों के बीच इस पैᆬसले पर चर्चा होती रही। चर्चा की दो धाराएं नजर आयीं लेकिन ज्यादा लोगों की नाराजगी दिखने का कारण था इस पैᆬसले के साथ कृष्ण और राधा के सम्बन्धों को आधार बनाना। जहां तक मेरी जानकारी है कृष्ण और राधा साथ-साथ नहीं रहते थे। कृष्ण से राधा उम्र में 15 साल बडी थीं। कृष्ण की हजारों गोपियों में से राधा एक थी। राधा उनकी खास सखा थां और कहीं भी यह जिव्रᆬ नहीं है कि राधा व कृष्ण साथ-साथ रहते थे। हमारे ब्यूरो प्रमुख विजय शंकर पंकज ने हमारी चर्चा को आगे बढाते हुए राधा व कृष्ण के सम्बन्धों पर विस्तार से जानकारी दी। बकौल पंकज जी राधा व कृष्ण एक ही गांव के रहने वाले थे। राधा शादी शुदा थी लेकिन वह कृष्ण की गोपियों में सबसे खास थी। बावजूद इसके वह जब कभी भी कृष्ण से मिली उनके साथ गांव की अन्य गोपियां भी हुआ करती थी। सबके साथ ही वह रास रचाया करती थी। यह सारे तथ्य पौराणिक कथाओं में वर्णित हैं। लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने पौराणिक कथाओं पर ठीक तरह से गौर नहीं किया और उसे आज के लिव इन रिलेशनशिप के रिश्तों से जोड दिया। लिव इन रिलेशनशिप का मतलब कोई भी बालिग युवक व युवती शादी से पहले ही आपस में न ही शारीरिक सम्बन्ध बना सकते हैं बल्कि साथ रह भी सकते हैं। कानून व पुलिस इन सम्बन्धों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। देश की अदालत जब समलैंगिकता को गलत नहीं मानती तो युवक व युवती के लिव इन रिलेशनशिप को किस तरह से गलत ठहराया जा सकता है। मेरा ऐतराज इस पर है भी नहीं लेकिन मेरा निवेदन है कि लिव इन रिलेशनशिप की सच्चाई को भी अदालतों को देखना चाहिए। किस तरह से युवक व युवतियां लिव इन रिलेशनशिप के नाम पर ठगे जा रहे हैं यह उन हजारों युवक व युवतियों से पूछिए जो इसके शिकार हुए। ऐसा नहीं है कि युवक ही युवती को इस बहाने एक्सप्लायट करके धोखा दे रहे हैं। युवतियां भी अपने साथी को खूब धोखे दे रही हैं। इसे नजदीक से जानने के लिए यूटीवी बिन्दास का शो इमोशनल अत्याचार देखना होगा। आपका पार्टनर आपके प्रति कितना ईमानदार है इस शो को देखने के बाद पता चलता है। लिव इन रिलेशनशिप के कई सम्बन्ध इस टीवी शो के दौरान ही असलियत खुलने के बाद टूट जाते हैं। कोई जरुरी नहीं कि आप अपने जिस दोस्त के साथ कमिटेड रिलेशनशिप में रह रहे हों वह भी उतना ही कमिटेड हो। मुझे लगता है कि समाज की इन सच्चाईयों की रोशनी में पैᆬसले आने चाहिए। क्योंकि देश में कानून से ही लोग थोडा सा डरते हैं।

शनिवार, 6 मार्च 2010

साधुओं की जय हो-मीडिया की भी जय हो

देश की मीडिया में इस समय एक अजीब तरह की बहस छिडी हुई है। कौन बाबा असली और कौन नकली। क्या धर्म है और क्या अधर्म। दिल्ली में इच्छाधारी बाबा की गिरपत्तारी व दक्षिण में स्वामी नित्यानन्द के एक तमिल आभनेत्री के साथ बन्द कमरे का वीडियो सन टीवी द्वारा दिखाये जाने के बाद मीडिया बाबाओं को कटघरे में खडा करने में जुटा हुआ है। टीवी पर लम्बी-लम्बी बहस चल रही है। स्टूडियो में साधुओं के साथ ही समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को बैठाकर चर्चा की जा रही है। इस पूरी बहस के दिलचस्प पहलू पर शायद कुछ  ही लोगों ने गौर किया होगा। एक घंटे की बहस में लम्बे-लम्बे ब्रेक के अलावा नित्यानन्द स्वामी जी का लम्बा फुटेज  व इच्छाधारी बाबा का नृत्य करने की फुटेज  ज्यादा दिखायी जा रही है। बहस तो हो रही है लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रही है। मैने कई चैनलों पर इस मुद्दे पर होने वाली बहस पर गौर किया लेकिन किसी पर भी बहस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। चैनल वाले यह कह सकते हैं कि बहस में शामिल लोग किसी एक मुद्दे पर एकमत नहीं हो सके। एक चैनल पर तो स्वामी रामदेव जी ने कह दिया कि पाखण्डी बाबाओं को फांसी पर लटका देना चाहिए। श्रीश्री रविशंकर ने भी कहा कि सन्त कहने वाले फर्जी लोगों को सजा मिलनी चाहिए। चैनल के एंकर बार-बार यही कहते रहे कि लोग कैसे नकली व असली सन्त के बीच पहचान करें। मुझे लगता है कि समाज इस बारे में पूरी तरह से जागरुक है। तभी तो आसाराम बापू पर पिछले दो वर्ष से हत्या के आरोप लग रहे हैं लेकिन उनके भक्तों की संख्या में कोई कमी नहीं आयी। सत्य साई बाबा पर बच्चों के यौन शोषण के साथ चमत्कार करने के तमाम आरोप मीडिया ने लगाये लेकिन भक्तों की तादात कम नहीं हुई। अपने को भगवान घोषित करने वाले लाडेसर महराज से मेरी कई बार मुलाकात हुई। बाराबंकी के सांसद पी़एल़पुनिया जी मेरे सामने ही पहली बार अपनी धर्मपत्नी के साथ लाडेसर महराज से उनके गोमतीनगर स्थित आश्रम में मिले थे। पुनिया जी ने उनसे अपनी राजनीतिक इच्छा का इजहार करते हुए उसमें सफलता के बारे में पूछा था। बाबा ने उन्हें राजनीति में पूरी सफलता मिलने की बात कही थी। बाबा ने यह पुनिया जी के रिटायरमेंट के फौरन बाद कहा था। जबसे मीडिया उनके पीछे पडी लाडेसर महराज ने पूरे देश में अपना भ्रमण कार्यव्रᆬम बन्द कर दिया। अब वे अपने पुष्कर आश्रम में ही रहते हैं। अभी भी उनके भक्तों की तादात कम नहीं हुई है। हजारों लोग लाडेसर महराज के दर्शन के लिए पुष्कर आश्रम में जुटते हैं। रोज शाम का बाबा जी दर्शन करते हैं।

मेरा मानना है कि मीडिया को साधु सन्तों या किसी भी मामले में मीडिया ट्रायल नहीं करना चाहिए। सन्त व सन्यासी होने का मतलब यह कत्तई नहीं है कि वह ब्रम्हचर्य का पालन करे। कई सन्यासी हैं जो वैवाहिक जीवन जी रहे हैं। यह जरुर है कि सन्त व सन्यासी को हमारा समाज मार्गदर्शक मानता है। सन्त जो भी बताते हैं उसका हम पालन करते हैं। ऐसे में सन्तों को अपनी मर्यादा का ख्याल जरुर करना चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया की नजर उन पर रहती है। वैसे जो भी लोग सामाजिक जीवन जीते हैं उन्हें यह ख्याल रखना चाहिए कि उनके छोटे से कृᆬत्य से समाज पर कितना खराब असर पडता है। पूरे समुदाय की बदनामी होने लगती है। लेकिन मीडिया को भी इन बातों को दिखाने के लिए टीआरपीके चक्कर में पडने की बजाय जांच रिपोर्ट आने तक का इंतजार जरुर करना चााहए। स्वामी नित्यानन्द की जो पुᆬटेज टीवी पर दिखायी जा रही है उसमें तमिल आभनेत्री के अलावा उस कमरे में दो अन्य व्यक्ति भी दिखायी दे रहे हैं। ऐसे में यह कैसे कहा जा सकता है कि नित्यानन्द आभनेत्री के साथ किसी तरह के सम्बन्ध बना रहे थे। दिल्ली के इच्छाधारी बाबा के आश्रम से कोई काल गर्ल नहीं पकडी गयी लेकिन उसे काल गर्ल का सौदागर बता दिया गया। पुलिस ने कहा और मीडिया ने मान लिया। इच्छाधारी बाबा का नृत्य करता हुआ एक वीडियो भी खूब दिखाया जा रहा है। उस वीडियो में बाबा किसी महिला के साथ तो दिखते नहीं हैं। बताया गया कि बाबा के 500 काल गर्ल से जानपहचान है लेकिन किसी एक को सामने लाकर पुलिस पेश नहीं कर पायी। इच्छाधारी बाबा हास्पीटल चलाते हैं। जहां तक मेरी जानकारी है यह हास्पीटल सेवा भावना से चलाया जा रहा है। यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि जिस बाबा के इतने सारे भक्त हैं वह काल गर्ल का रैकेट क्यों चलायेगा। इसकी जानकारी उनके किसी भक्त को नहीं हो पायी। बाबा ने अपने बयान में जो कहा कि उन्हें फंसाया गया। ऐसा हो भी सकता है, लेकिन अब तो पुलिस व मीडिया ने उन्हें देश में काल गर्ल का सबसे बडा सौदागर घोषित कर दिया है। किसी भी हत्या करने वाले को तब तक मीडिया में हत्यारा नहीं लिखा जाता है जब तक कोर्ट उस पर आरोप नहीं तय कर देती है। मुझे लगता है कि इसी तरह इन बाबाओं के बारे में भी होना चाहिए। पुलिस अगर चार्जशीट दायर करती है और उस पर अदालत किसी भी आरोप में बाबा पर आरोप तय करती है तो उसे कानून के तहत सजा मिलनी चाहिए। यह जरुर है कि इधर साधु सन्तों की देश में बाढ आ गयी है। सन्तों के पास वुᆬछ ही दिनों में अरबों रुपये की सम्पत्ति भी जमा हो जाती है। लोगों को यह देखना होगा कि आखिर बाबा के पास यह करोडों की सम्पत्ति कहीं से आयी? सरकारी मशीनरी को भी इस पर नजर रखनी चाहिए। आम लोगों को भी सन्तों पर भरोसा थोडा जांच परख कर करना चाहिए। मीडिया को धार्मिक मामलों में थोडा संयम बरतना चाहिए।

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

वाह रे सचिन तूने कमाल कर दिया

बुधवार को ग्वालियर में सचिन ने वनडे मैन में 200 रन बनाकर साबित कर दिया है वह भारत ही नहीं दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाडी हैं। सचिन को बहुत-बहुत बधाई। सचिन को पूरी दुनिया से बधाईयों का तांता लगा हुआ है। राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने भी सचिन की इस कामयाबी पर उन्हें बधाई दी। मुझे लगता है हर व्रिᆬकेट प्रेमी सचिन की इस कामयाबी से अपने को किसी न किसी रुप में जोडना चाह रहा होगा। टीवी चैनलों पर सचिन के इस कामयाबी पर घंटों तक स्टूडियो में चर्चा होती रही। दुनिया भर के खिलाडियों ने सचिन को व्रिᆬकेट का किंग कहा। सचिन रमेश तेंदुलकर को प्रख्यात खिलाडी सुनील गावस्कर व कपिलदेव ने व्रिᆬकेट का महानतम बल्लेबाज कहा। सचिन 16 साल की उम्र से व्रिᆬकेट खेल रहे हैं। रिकार्ड के साथ रहना उनकी अदा है। वन डे मैच में तो सचिन ने सभी रिकार्ड अपने नाम कर रखे हैं। वन डे में सर्वाधिक शतक व सर्वाधिक रन बनाने के साथ ही सबसे ज्यादा मैन आफ द मैच व सर्वाधिक मैन आफ द सिरीज का खिताब भी सचिन के नाम दर्ज है। ग्वालियर का मैच शायद ही सचिन व उनके प्रशंसक कभी भूल पाएंगे। 147 गेंद में नाबाद 200 रन बनाने के लिए 25 चौके व 3 छक्के लगाये। विशेषज्ञ तो लोकप्रियता में फिल्मी दुनिया की हस्ती शाहरुख खान से भी सचिन को आगे बता रहे हैं। वास्तव में सचिन हैं ही ऐसे की कोई भी उनकी तारीफ किये नहीं रह सकता। मूर्धन्य पत्रकार स्व़ प्रभाष जोशी जी जीवित होते तो जनसत्ता में सचिन की इस कामयाबी पर पृथम पृष्ठ पर उनका विशेष लेख जरुर होता। व्रिᆬकेट प्रेमियों को सचिन की इस सफलता पर प्रभाष जी की टिप्पणी से महरुम रहना पडेगा। सचिन जितने महान बल्लेबाज हैं व्यक्तिगत तौर पर भी उतना ही सरल व्यक्तित्व है उनका। मेरी सचिन रमेश तेंदुलकर से एक बार लम्बी मुलाकात हुई। कानपुर में पाकिस्तान के साथ वन डे मैच के बाद सचिन व उनकी पूरी टीम मेरे साथ ही लखनऊ  आयी थी। सचिन के लखनऊ आने के लिए सहारा इण्डिया परिवार ने विशेष तौर पर सोनाटा गोल्ड कार भेजा था। लैण्डमार्क होटल से निकलने के बाद मैने उनसे उसी कार में बैठने का अनुरोध किया। सचिन ने कहा कि मैं अपने साथी खिलाडियों के साथ ही बस से ही चलूंगा। सचिन ने कहा वह बस में गेट के किनारे वाली पहली सीट पर किनारे बैठेगें। सचिन बेहद शालीन हैं और लोगों से बहुत कम बातचीत करते हैं। बस में बैठने के बाद उन्होंने कान में हेडफोन लगा लिया और आईपाड से गाना सुनने लगे। रास्ते में तमाम लोग सडक के किनारे खडे थे जो सचिन की एक झलक पाना चाहते थे। जहां कहीं भी भीड सचिन ने देखी खिडकी का शीशा थोडा हटाकर हाथ जरुर हिलाते। लखनऊ पहुंचने के बाद सहारा शहर में सचिन ने डिनर के दौरान ज्यादा समय अकेले में ही गुजारा। सबसे मिलने के बाद सचिन ने कहा कि उन्हें किनारे बैठना है। महेन्द्र सिंह धोनी ने उस समय सचिन के बारे में कहा था उन्हें अकेलापन अच्छा लगता है। ऐसा लगता है कि वे हर समय बल्लेबाजी की ट्रिक के बारे में ही चिन्तन करते रहते हैं। वाह रे सचिन तुम ऐसे ही खेलते रहो ।

कैसे-कैसे पत्रकार

 उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को पटना व दिल्ली के बाद पत्रकारों का गढ कहा जाता है। राजधानी होने की वजह से यहां पर पत्रकारों की एक बडी फौज है। तीन सौ से ज्यादा पत्रकारों को राज्य सरकार ने बाकायदे राज्य मुख्यालय की मान्यता दे रखी है। जिले स्तर पर भी करीब 50 पत्रकारों को मान्यता दी गयी है। प्रमुख दैनिक व साप्ताहिक समाचार पत्रों व टीवी चैनल के अलावा इस शहर में कितने समाचार पत्र महज कागजों में छप रहे हैं हो सकता है सूचना विभाग को भी इनके बारे में न पता हो। किसी को पत्रकार बनने के लिए कोई डिग्री की जरुरत नहीं है। जो चाहे वह आसानी एक समाचार पत्र का पंजीकरण कराकर खुद को सम्पादक घोषित कर ले। सरकार भी उसे ऐसा करने से नहीं रोक सकती है। पत्रकारों की बढती भीड से पूरी पत्रकार बिरादरी चिन्तित है। कहा जा रहा है कि इस भीड की वजह से पत्रकारों का समाज में स्तर गिर रहा है। पत्रकारों को लोग अब अच्छी नजर से नहीं देख रहे हैं, यह निहायत ही चिन्तनीय है। किसी सडक पर खडे होकर दस मिनट तक नजर दौडायें तो देखेंगे वहां से गुजरने वाली दस गाडियों में से एक पर प्रेस लिखा हुआ रहता है। अपराध की एक पत्रिका निकालने वाले एक सम्पादक ने कितनी गाडियों पर पत्रिका का नाम छपवा रखा है शायद उन्हें भी नहीं पता होगा। इसी तरह तमाम पत्रकार अपने नाते रिश्तेदारों व मित्रों की गाडियों पर प्रेस लिखवा दिये हैं ताकि पुलिस कहीं उन्हें न रोके। यदि कहीं पर पुलिस रोकने की कोशिश करती है तो पत्रकार का रौब अलग गांठते हैं। मेरे एक पत्रकार मित्र आसिफ की गाडी से हजरतगंज में एक गाडी से पिछले दिनों मामूली टक्कर हो गयी। आसिफ को उस प्रेस लिखी गाडी पर बैठा व्यक्ति पत्रकार का रौब गांठकर आधे घंटे से ज्यादा देर तक परेशान कियाा। बाद में जब असलियत खुली तो पता चला कि वह खुद नहीं बल्कि उसका कोई जानने वाले एक पत्रिका निकालते हैं। वुᆬछ छुटभैये फर्जी पत्रकार नामी गिरामी पत्रकारों का नाम लेकर लोगों को धमकाने से भी नहीं चूकते। एशियन ऐज की विशेष संवाददाता आमता वर्मा के साथ घटी घटना महज एक बानगी है। एक पत्रकार ने एचसीएल कम्पनी की पत्रकार वार्ता में अपने को एशियन ऐज का पत्रकार बता दिया। यही नहीं एक एक व्यक्ति अपने को एशियन ऐज का पत्रकार बताकर इसी शहर में एक मकान पर कब्जा कर लिया था। बाद में इसकी शिकायत एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल से की गयी तब मामला सुलटा। इस तरह की एक घटना तो मेरे साथ भी घटी। मेरे पत्रकार मिश्र श्रीधर जी एक बार कानपुर से लौट रहे थे। चारबाग स्टेशन पर उन्होंने एक व्यक्ति की स्वूᆬटर से लिपत्ट ली। स्वूᆬटर वाले व्यक्ति ने अपने को राष्ट्रीय सहारा का पत्रकार देवकी नन्दन मिश्र बताया। चूंकि श्रीधर जी मुझे जानते थे इस वजह से चौंक गये। हिन्दुस्तान टाइम्स के ब्यूरो प्रमुख हसन जी एक मंत्रीजी से मिलने गये। वहां मंत्री जी ने बताया कि आपसे पहले हमारी बात हो चुकी है। यह सुनकर हसन साहब चौंक गये उन्होंने मंत्री जी से कहा कि हम तो आपसे पहली बार मिल रहे हैं कभी बात भी नहीं हुई। पता चला कि कोई व्यक्ति मंत्री जी हिन्दुस्तान टाइम्स का हसन बनकर कई बार बात कर चुका था। दरअसल इन फर्जी पत्रकारों की बाढ आने के लिए वुᆬछ हद तक जिम्मेदार नामी गिरामी पत्रकार व शासन सत्ता में बैठे वुᆬछ आधकारी व नेता हैं। एक महिला जो एक समय में एक राजनीतिक पार्टी में थी इस समय अक्सर एनेक्सी में आती जाती है। वह पत्रकार नहीं है बावजूद इसके उसका पास बना हुआ है। वह वुᆬछ आईएएस अफसरों के दपत्तर में अक्सर देखी जा सकती हैं। अपने को पत्रकार साबित करने के लिए वह कभी कभार मीडिया सेन्टर के भी चक्कर लगा लेती हैं। पत्रकारों की प्रमुख संस्था प्रेस क्लब की हालत इन दिनों अजीब सी हो गयी है। छोटे-मोटे कार्यव्रᆬम भी वहां छुटभैये प्रायोजकों के भरोसे आयोजित होते हैं। यह हालत तब है जब प्रेस क्लब के पास अपना अच्छा खासा फण्ड भी है। हाल में क्लब में तहरी भोज का आायोजन किसी संगठन के सहयोग से सम्पन्न हुआ। पत्रकारों में इसे लेकर बेहद चिन्ता है। मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के पूर्व अध्यक्ष व बीबीसी के विशेष संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी ने जब मुझसे इस घटना का जिव्रᆬ किया तो वे बेहद दुखी थे। मीडिया सेन्टर में मौजूद अन्य पत्रकार भी इस पर बेहद चिन्तित दिखे। ऐसी ढेर सारी घटनाएं हैं जिसे लेकर पत्रकार बिरादरी चिन्तित है। सब चाहते हैं कि कोई ऐसा रास्ता निकले जिससे पत्रकारों की जगह-जगह होने वाली जगहंसाई पर रोक लगायी जा सके। मुझे लगता है कि जल्द ही पत्रकार एक मंच पर आकर इस तरह के फर्जीवाडे पर रोक लगाने की कोशिश करेंगे तभी उनकी साख बच सकेगी।

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

वाकई लडकियां बहुत स्मार्ट होती हैं

राहुल गांधी पिछले दिनों जब बिहार के एक वुमेन्स कालेज में गये थे तो उनकी सहज सी टिप्पणी लडकियों के बारे में आयी थी। लडकियां बहुत स्मार्ट होती हैं। उनके कहने का मतलब साफ था लडकियां स्मार्ट तो दिखती ही हैं बेहद चालाक भी होती हैं। उनकी टिप्पणी अनायास नहीं थी। यह सच कि लडकियां बेहद स्मार्ट होती हैं वे कब कहां किसको उलझा दें नहीं कहा जा सकता है। चाहे वह उनके परिवार का कोइ सदस्य यहां तक पिता, भाई व पति ही क्यों न हो। बाराबंकी जिले के सियाराम रावत तो अब यही कहते हैं कि अगले जनम मोहे बिटिया न दीजो। बिटिया (लडकी) जिसे समाज मां, बहन, पत्नी व बेटी के साथ ही लक्ष्मी कहा जाता है ने अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए अपने पिता पर ही शारीरिक शोषण का आरोप लगा डाला। सियाराम की दो बेटियों ने जब पुलिस के सामने उपस्थित होकर अपने पिता को खुद का बलात्कारी कहा तो पुलिस का उसके खिलाफ कार्रवाई करना लाजिमी था। पुलिस ने सियाराम को गिरपत्तार कर लिया लेकिन जब जांच में असली भेद खुला तो सबके पैरों तले जमीन खिसक गयी। वास्तव में सियाराम बलात्कारी नहीं था बल्कि उसने अपनी बेटियों की स्वच्छन्दता पर रोक लगाने की कोशिश की थी। अपने प्रेमियों के साथ खुलेआम गांव मोहल्ले में उनका घुमना सियाराम को पसन्द नहीं आया। तब उसकी दोनों बेटियों ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पिता पर ही बलात्कार का झूठा आरोप मढने की नापाक योजना बना डाली। जब तक भेद खुलता सियाराम कलयुगी पिता बन चुका था। लखनऊ में तीन वर्ष पूर्व भी पिता द्वारा अपनी बेटी के साथ वर्षों तक बलात्कार किये जाने की घटना प्रकाश में आयी थी। उसमें भी कितनी सत्यता रही होगी इस समय नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तो साफ है कि लडकियां कब कहां किसको फंसा दें कहा नहीं जा सकता है। मेरे एक मित्र को इसी लखनऊ शहर की एक लडकी ने दोस्ती के नाम पर खूब एक्सप्लायट किया। जब उन्होंने मेरे से इस घटना का जिव्रᆬ किया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मेरे एक परीचित जो दिल्ली में एक कम्पनी में आधकारी हैं की पत्नी ने शादी के एक साल के भीतर सात जन्मों के इस बन्धन को तोडने का ऐलान कर दिया। लडकी इसी लखनऊ शहर की है। पत्नी ने पहले उनकी पिटाई की बाद में उल्टे उन्हीं के खिलाफ दहेज उत्पीडन का मुकदमा भी दर्ज करा दिया। अब वे बेचारे पुलिस का चक्कर काट रहे हैं। मेरे कहने का यह कत्तई मतलब नहीं है कि सभी लडकियां इस तरह की ही होती हैं लेकिन समाज में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ रही है जो ठीक नहीं है। लोगों को इस सामाजिक बुराई से जागरुक करने की जरुरत हैं। इसके साथ ही पुलिस को भी इस तरह की शिकायतों पर बगैर गहराई से जांच किये कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। बाराबंकी पुलिस ने यदि गहराई से पूरे मामले की जांच कर ली होती तो शायद ही सियाराम समाज के सामने अपनी ही बेटियों जिनकी वह भलाई चाहता था का बलात्कारी नहीं कहलाया होता।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

आतंकवाद के खिलाफ खडे हों आम लोग

पुणे में आतंकवादी हमले के बाद एक बार फिर देश की सुरक्षा एजेन्सियों की कार्यप्रणाली पर मीडिया ने ऊंगली उठाना तेज कर दिया है। हरबार की तरह इस बार इसे खुफिया एजेन्सियों की बडी चूक कहा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पुणे आतंकवादियों के निशाने पर था यह पहले पकडे गये आतंकवादियों ने खुलासा कर रखा था। अमरिका में पकडे गये खुंखार आतंकवादी हेडली का नाम भी लिया जा रहा है। हेडली ने दिल्ली के साथ ही पुणे व कानपुर को लश्कर के निशाने पर बताया था। यह ठीक बात है कि हेडली ने इस बात का खुलासा कर रखा था कि पुणे में ओशो आश्रम व जर्मन सेंटर आतंकियों की हिटलिस्ट में था लेकिन यह हमले कब होंगे इस बारे में तो किसी को नहीं पता था। पुणे के कमिश्नर का बयान आया कि वह पूरी तरह से चौकस थे लेकिन इसी बीच आतंकवादी अपना काम कर गये। इस हमले को एक सप्ताह गुजरने वाले हैं लेकिन अभी तक आतंकवादी गुट के नाम का खुलासा पुलिस नहीं कर पायी है। पुलिस का दावा है कि उसे अहम सुराग हाथ लगे हैं। किसी घटना के बाद उसके खुलासे की जिम्मेदारी तो निश्चित ही पुलिस व खुफिया एजन्सियों की है लेकिन घटना से पूर्व चौकसी का जिम्मा सिर्पᆬ पुलिस का ही नहीं है। आम आदमी को भी चौकन्ना रहने की जरुरत है। हम लोग अगर थोडी सी सावधानी बरतें तो शायद बडी आतंकवादी वारदात को टाला जा सकता है। शायद पुणे की घटना को भी हम टाल सकते थे। पुणे में जिस तरह से आतंकवादी रेस्तरां में आये और बम से भरा बैग रखकर चले गये और देर तक किसी की भी निगाह उस पर नहीं गयी। ऐसा नहीं है निगाह जरुर गयी होगी लेकिन किसी ने उस बैग पर संदेह जताने की कोशिश नहीं की। बैग को देखने वाले हर शख्स ने यह समझकर कि यह सामने वाले का होगा चुप रह गये होंगे। किसी ने भी यदि उस बैग के बारे में पूछताछ कर ली होती तो शायद इतनी बडी घटना से बचा जा सकता था। जब कोइ उस बैग का वारिस नहीं मिलता तो फौरन पुलिस को सूचना दी जाती। यह भी हो सकता था कि पुलिस के आने से पहले बम फट जाता लेकिन इतनी जान तो नहीं ही जाती। लेकिन समय से सूचना मिलने पर यह भी हो सकता था कि बम फटने से पहले ही पुलिस पहुंचकर उसे डिपत्यूज कर देती। यह तभी सम्भव हो पाता जब कोइ जागरुक नागरिक उस लावारिश बैग पर संदेह व्यक्त करता। रेलवे स्टेशन पर अक्सर एनाउंस होता रहता है कि किसी लावारिश वस्तु या सामान का न छुएं, कहीं दिखे तो फौरन पुलिस को सूचना दें। कभी कभार लोग लावारिश चीज देखकर पुलिस को सूचना भी देते हैं। मुझे लगता है कि जिस तेजी के साथ देश में आतंकवाद रुपी सांप अपना फन पैᆬला रहा है उससे मुकाबला अकेले पुलिस व सुरक्षा एजेन्सियां नहीं कर सकती हैं। अपने देश में इतना पुलिस बल और हथियार नहीं मौजूद है जिसे एक-एक व्यक्ति की सुरक्षा में तैनात कर दिय जाय। ऐसे में देश की सवा सौ करोड की आबादी को खुद इस आतंकवाद से मुकाबले के लिए खडा होना पडेगा जेहाद से टक्कर लेनी होगी। अपने आसपास की वस्तु व रहने वाले व्यक्ति पर नजर रखनी होगी, सार्वजनिक स्थान पर विशेषकर। ऐसे मामले प्रकाश में खूब आ रहे हैं कि पैसों की लालच में अपने देश के वुᆬछ लोग बहकावे में आकर आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं। आतंकी की पौध को लहलहाने में उनकी मदद कर रहे हैं। यह निहायत ही गम्भीर बात है। हमें ऐसे पनाहगारों से भी सावधान रहन्ो की जरुरत है। उनकी भी पहचान करके उनके बारे में पुलिस को जानकारी देने की जरुरत है। आतंकवादियों के हौसलों को पुलिस नहीं बल्कि आम लोग पस्त कर सकते हैं। पुलिस को हर मोहल्ले में रहने वालों की जानकारी नहीं होती है लेकिन पडोसी को अपने बगल में रहने वाले के बारे में सबवुᆬछ पता होता है। ऐसे संदिग्ध व्यक्ति पर नजर रखने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को पुलिस की भूमिका अदा करनी होगी तभी शायद आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है। मीडिया की भी भूमिका इसमें बेहद महत्वपूर्ण है। वजह मीडिया पर लोगों का पूरा भरोसा है। सरकार भले ही अपनी आलोचना से नाराज होकर मीडिया पर आरोप लगाने लगे लेकिन आम लोग आज भी सर्वाधिक भरोसा मीडिया पर करते हैं क्योंकि मीडिया हर सुखदुख में आम आदमी के साथ खडा रहता है। वैसे तो मीडिया 24 घंटे जागरुक रहता है लेकिन उसे आम लोगों में आतंकवाद से बचाव के लिए अपने इस विश्वास को हथियार बनाना चाहिए। मीडिया ने आतंकवाद के खिलाफ आम लोगों को जागरुक कर लिया तो आतंकवादी को एक दिन भी देश में पनाह नहीं मिल पाएगी। फिर आतंकवादी हमले तो दूर की कौडी होंगे। जय हिन्द जय आम लोग।

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

आखिर कब एकजुट होंगे यूपी के पत्रकार

देश के सबसे बडे सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी के पत्रकारों के बीच इन दिनों जबरदस्त मारकाट (आरोप प्रत्यारो) मची हुइ है। पत्रकार पूरी तरह से गुटों में बंट गये हैं। दो गुट तो साफ तौर से नजर आ रहा है लेकिन इससे आधक गुटों से इनकार नहीं किया जा सकता । यह शायद राजधानी में पहली बार देखने को मिल रहा है। वैसे तो उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के चुनाव के समय पत्रकार गुटों में बंटते हैं और चुनाव के बाद फिर सबएकजुट हो जाते हैं लेकिन पहली बार ऐसा दिख रहा है कि चुनााव खत्म होने के बाद भी पत्रकारों में जबरदस्त गुटबाजी है। पत्रकारों की इस गुटबाजी की चर्चा अफसर व राजनेता भी चटखारे लेकर कर रहे हैं। सूचना विभाग भी पत्रकारों की इस गुटबाजी का शिकार हो रहा है। किसी एक मुद््‌दे पर पत्रकार एकजुट नहीं हैं। यहां तक कि अभी हाल में पी 7 न्यूज चैनल के पत्रकार ज्ञानेन्द्र शुक्ल का एक खबर की बाइट को लेकर प्रदेश के ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद से विवाद हो गया। हालात यहां तक खराब हो गये कि मारपीट की नौबत आ गयी। पत्रकारों का एक गुट वहां मौके पर पहुंचा और विवाद को शान्त कराया। कैबिनेट सचिव ने मीडिया सेन्टर में पत्रकारों के बीच आकर घटना के लिए खेद जताया तब जाकर किसी तरह पत्रकारों की इज्जत बची। इस घटना के बाद ही पत्रकारों का एक गुट ज्ञानेन्द्र की ही पूरे घटना में दोष दे रहा था। यह सबवुᆬछ किसी मीटिंग में नहीं बल्कि अलग-अलग चर्चा के दौरान ये सबवुᆬछ कहा गया। हो सकता है कि ज्ञानेन्द्र शुक्ल की कोइ गलती इस पूरे मामले में रही हो लेकिन मेरी राय में पत्रकारों को इसमें पूरी तरह से एकजुटता का परिचय देना चाहिए था। ऐसी चर्चा से भी बचना चाहिए था जिससे लगे कि पत्रकारों में किसी तरह की गुटबाजी है लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि राजधानी के पत्रकारों को क्या हो गया है जो आपस मं सिरपुᆬटैवल कर रहे हैं। किसी के बारे में किसी की व्यक्ति राय खराब हो सकती है लेकिन उसे मीडिया समाज से बाहर प्रदर्शित करना ठीक नहीं है। एक सांध्य समाचार पत्र ने वुᆬछेक पत्रकारों के खिलाफ ही आभयान चला रखा है। यह ठीक नहीं है। मेरी समझ से इससे पत्रकार बिरादरी ही बदनाम हो रही ह। मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति का चुनाव समाप्त हो गया जो पदाधिकारी चुन लिये गये उन्हें काम करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। सबको उनका पूरा साथ देना चाहिए। कमेटी के पदाधिकारियों को भी सबको साथ लेकर चलना चाहिए। चुनाव के बाद समिति का विरोध करना ठीक नहीं है। वह भी ऐसी कमेटी का जिसके पास किसी तरह के वित्तीय आधकार नहीं है। कोइ प्रशासनिक आधकार नहीं है। चुनाव से पहले वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त तिवारी व मेरे साथ भी एक दिलचस्प घटना घटी। उस घटना में भी कइ पत्रकार साथियों ने पुलिस की बजाय हमलोगों का विरोध किया था। यह विरोध के स्वर मेरी वजह से नहीं बल्कि हेमन्त तिवारी की वजह से पत्रकारों ने उठाये थे लेकिन यहां मैं यह बता दूं कि कोशिश होनी चाहिए कि हम सच के साथ खडे हों क्योकि पत्रकार समाज का दर्पण होता है। आज भी लोगों का पूरा भरोसा मीडिया और उसे चलाने वाले पत्रकारों पर है। ऐसे में पत्रकार यदि अपने बीच होने वाली घटनाओं पर सच जाने बगैर अपने किसी मीडियाकर्मी का विरोध या आलोचना करता है तो ठीक नहीं है।
देवकी नन्दन मिश्र
पत्रकार लखनऊ
9839203994